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________________ जैन दर्शन में प्रमाण मीमांसा 1३७ मानने में समन्वयवादी जैनो को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। प्रत्यक्ष और परोक्ष का उदर इतना विशाल है कि उसमें प्रमाणभेद समाने में किंचित् भी कठिनाई नहीं होती। प्रमाण-विभाग प्रमाण के मुख्य भेद दो है-प्रत्यक्ष और परोक्ष। प्रत्यक्ष के दो भेद होते हैं-व्यवहार प्रत्यक्ष और परमार्थ-प्रत्यक्ष। व्यवहार प्रत्यक्ष के चार विभाग है-अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा। परमार्थ-प्रत्यक्ष के तीन विभाग हैं-केवल, अवधि और मनः पर्यव । परोक्ष के पॉच मेद हैं-स्मृति, प्रत्यभिज्ञा, तर्क, अनुमान और आगम। ज्ञान श्रावृतदशा अनावृतदशा असाक्षात्याही साक्षात् ग्राही साक्षात् ग्राही मात केवल ज्ञान यथार्थ अयथार्थ यथार्थ अयथार्थ यथार्थ परोक्ष प्रत्यक्ष संव्यवहारिक प्रत्यक्ष परोक्ष आगम शब्द J प्रमाण वाक्य नयवाक्य ३०.) अवग्रह ईहा अवाय धारणा स्मृति प्रत्समिशा तर्क अनुमान
SR No.010217
Book TitleJain Darshan me Praman Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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