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________________ १६६ जैन दर्शन मे प्रमाण मोमासो निक्षेप का आधार निक्षेप का आधार प्रधान-अप्रधान, कल्पित और अकल्पित दृष्टि-विन्दु हैं। भाव अकल्पित दृष्टि है। इसलिए वह प्रधान होता है। शेप तीन निक्षेप कल्पित होते हैं, इसलिए वे अप्रधान होते हैं। ___ नाम में पहिचान और स्थापना में आकार की भावना होती है, गुण की वृत्ति नहीं होती। द्रव्य मूल-वस्तु की पूर्वोत्तर दशा या उससे सम्बन्ध रखने वाली अन्य वस्तु होती है। इममें भी मौलिकता नहीं होती। इसलिए ये तीनो मौलिक नहीं होते। निक्षेप पद्धति की उपयोगिता निक्षेप भाषा और भाव की सगति है । इसे समझे विना मापा के प्रास्ताविक अर्थ को नही समझा जा सकता। अर्थ-सूचक शब्द के पीछे अर्थ की स्थिति को स्पष्ट करने वाला जो विशेषण लगता है, यही इसकी विशेषता है। इसे 'स-विशेपण भाषा-प्रयोग' भी कहा जा सकता है। अर्थ की स्थिति के अनुरूप ही शब्द-रचना या शब्द प्रयोग की शिक्षा वाणी-सत्य का महान् तत्त्व है। अधिक अभ्यास-दशा में विशेषण का प्रयोग नहीं भी किया जाता है, किन्तु वह अन्तर्हित अवश्य रहता है.. यदि इस अपेक्षा दृष्टि को ध्यान में न रखा जाए तो पग-पग पर मिथ्या भाषा का प्रसग आ सकता है। जो कभी अध्यापन करता था, वह आज भी अध्यापक है-यह असत्य हो सकता है और भ्रामक भी। इसलिए निक्षेप दृष्टि की अपेक्षा नही मुलानी चाहिए। यह विधि जितनी गमीर है, उतनी ही व्यावहारिक है। नाम-एक निर्धन आदमी का नाम 'इन्द्र' होता है । स्थापना-एक पाषाण की प्रतिमा को भी लोग 'इन्द्र' मानते हैं। द्रव्य-जो कभी घी का घड़ा रहा, वह आज भी 'घी का घड़ा' कहा जाता है। जो घी का घड़ा बनेगा, वह घी का घड़ा कहलाता है। एक व्यक्ति आयुर्वेद मे निष्णात है, वह अभी व्यापार में लगा हुआ है फिर भी लोग उसे आयुर्वेद-निष्णात कहते हैं। भौतिक ऐश्वर्य वाला लोक में 'इन्द्र' कहलाता है। श्रात्म-संपत् का अधिकारी लोकोत्तर जगत् में "इन्द्र" कहलाता है । इस समूचे व्यवहार का कारण निक्षेप-पद्धति ही है।
SR No.010217
Book TitleJain Darshan me Praman Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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