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________________ १०] जैन दर्शन में प्रमाण मीमांसा (२) अचरम- समय अयोगि भवस्थ केवल-शान सिद्ध केवल-ज्ञान के दो भेद............(१) अनन्तर सिद्ध केवल-ज्ञान . (२) परम्पर-सिद्ध केवल-शान अनन्तर सिद्ध केवल-ज्ञान के दो भेद......(१) एकान्तर सिद्ध केवल-ज्ञान - (२) अनेकान्तर सिद्ध-केवल-ज्ञान परम्पर-सिद्ध केवल ज्ञान के दो भेद......(१) एक परम्पर-सिद्ध केवल ज्ञान (२) अनेक परम्परसिद्ध केवल-ज्ञान नो केवल ज्ञान के दो भेद.............. (१) अवधि-शान ( २ ) मनः पर्यव ज्ञाम अवधि शान के दो भेद. ........... (१) भव-प्रप्रात्ययिक • . (२) क्षायोपशमिक मनः पर्यव के दो भेद...............(१) अनुमति (२) विपुलमति परोक्ष ज्ञान के दो भेद...............(१) आमिनिबोधिक जान (२) श्रुतज्ञान आमिनिबोधिक ज्ञान के दो भेद.........(१) श्रुत-निश्रित (२) अश्रुत निश्रित . श्रुत-निश्रित के दो भेद..............(१) अर्थावग्रह (२) व्यञ्जना वग्रह अश्नुत-निश्रित के दो भेद........ ......(१) अर्थावग्रह (२) व्यञ्जना वग्रह अथवा-तृतीय प्रकार प्रत्यक्ष परोक्ष अनुमान आगम (अनुयोग३२ द्वार के आधार पर प्रमाण-व्यवस्था)
SR No.010217
Book TitleJain Darshan me Praman Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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