SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5] जैन दर्शन में प्रमाण मीमांसा के पास बैठता है तब उसे एक मिनट भी एक घण्टा जितना लम्बा लगता हैयह है अपेक्षावाद विवेक और समन्वय-दृष्टि • अमुक कर्तव्य है या अकर्तव्य ? अच्छा है या बुरा ? उपयोगी है या अनुपयोगी १ ये प्रश्न हैं। इनका विवेक अपेक्षा-दृष्टि के बिना हो नहीं सकता। अमुक देश, काल और वस्तु की अपेक्षा जो कर्तव्य होता है; वही मिन्न देश, काल और वस्तु की अपेक्षा अकर्तव्य बन जाता है। निरपेक्ष दृष्टि से कोई पदार्थ अच्छा-बुरा, उपयोगी अनुपयोगी नही बनता। किसी एक अपेक्षा से ही हम किसी पदार्थ को उपयोगी या अनुपयोगी कह सकते हैं। यदि हमारी दृष्टि में कोई विशेष अपेक्षा न हो तो हम किसी वस्तु के लिए कुछ विशेष वात नहीं कह सकते। धनसंग्रह की अपेक्षा से वस्तुओं को दुर्लभ करना अच्छा है किन्तु नैतिकता की दृष्टि से अच्छा नहीं है। सन्निपात में दूध मिश्री पीना बुरा है किन्तु स्वस्था। दशा में वह बुरा नहीं होता। शीतकाल में गर्म कोट उपयोगी होता है, वह गर्मी में नहीं होता। गर्मी में ठंडाई उपयोगी होती है, वह सदी में नहीं होती। शान्तिकाल में एक राष्ट्र का दूसरे राष्ट्र के प्रति जो कर्तव्य होता है, वह युद्धकाल में नहीं होता। समाज की अपेक्षा से विवाह कर्तव्य है किन्तु आत्म-साधना की अपेक्षा वह कर्तव्य नहीं होता। कोई कार्य, एक देश, एक काल, एक स्थिति में एक अपेक्षा से कर्तव्य और अकर्तव्य नही बनता वैसे ही एक कार्य सव दृष्टियो से कर्तव्य या अकर्तव्य बने, ऐसा भी नहीं होता। (कार्य का कर्तव्य और अकर्तव्य भाव भिन्न-भिन्न अपेक्षाओ से परखा जाएं। तभी ससमें सामञ्चस्य आसकता है। एक गृहस्थ के लिए कठिनाई के समय भिक्षा जीवन-निर्वाह की दृष्टि से, उपयोगी हो सकती है किन्तु वैसा करना अच्छा नही । योग-विद्या का अभ्यास मानसिक स्थिरता की दृष्टि से अच्छा है किन्तु जीविका कमाने के लिए उपयोगी नहीं है। भिक्ष्य और अमक्ष्य, खाद्य और अखाद्य, ग्राह्य और अग्राह्य का विवेक मी/ सापेन होता है। आयुर्वेदशास्त्र में ऋतु-श्रादेश के अनुमार पध्य और अपथ्य
SR No.010217
Book TitleJain Darshan me Praman Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy