SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन दर्शन में प्रमाण मीमांसा [११७ 1 से लेकर आज तक स्यादवाद के बारे मे जो दोष बताए गये है, उनकी संख्या लगभग आठ होती है, जैसे(१) विरोध (५) व्यतिकर (२) वैयधिकरण्य (६) संशय (३) अनवस्था (७) अप्रतिपत्ति (४) संकर (८) अमाव १-ठंड और गमों में विरोध है, वैसे ही 'है' और 'नहीं' में विरोध है ३२१ "जो वस्तु है, वही नहीं है"-यह विरोध है। २-जो वस्तु 'हे' शब्द की प्रवृत्ति का निमित्त है, वही 'नहीं' शब्द की प्रवृत्ति का निमित्त बनने की स्थिति में सामानाधिकरण्य नहीं हो सकता। (भिन्न निमित्तों से प्रवर्तित दो शब्द एक वस्तु में रहे, तब सामानाधिकरण्य होता है । सत् वस्तु में असत् की प्रवृत्ति का निमित्त नहीं मिलता, इसलिए सत् और असत् का अधिकरण एक वस्तु नही हो सकती। ३- पदार्थ में सात भग जोड़े जाते हैं, वैसे ही 'अस्ति' भंग मे भी सात भग जोडे जा सकते हैं-अस्ति भंग मे जुडी सम-भंगी में अस्ति-भग होगा, उसमे फिर सस-भंगी होगी। इस प्रकार सस-भगी का कही अन्त न आएगा। (४) 'है' और 'नही' दोनो एक स्थान मे रहेगे तो जिस रूप में है' है उसी रूप में नहीं होगा-यह संकर दोष आएगा। (५) जिस रूप से 'हे' है, उमी रूप से 'नहीं' हो जाएगा और जिस रूप से 'नहीं' है उसी रूप से 'है' हो जाएगा। विषय अलग-अलग नही रह सकेंगे। 2076) संशय से पदार्थ की प्रतिपत्ति (शान) नहीं होगी और प्रतिपत्ति हुए विना पदार्थ का अभाव होगा। जैन आचार्यों ने इनका उत्तर दिया है। सचमुच स्यादवाद मे दोष नहीं . आते। अह कल्पना उसका सही रूप न समझने का परिणाम है। इसके पीछे एक तथ्य है। मध्य युग में अजैन विद्वानो को जैन ग्रन्थ पढ़ने में झिझक थी क्यो थी पता नहीं, पर थी अवश्य । जैन श्राचार्य खुले दिल से अन्य दर्शन
SR No.010217
Book TitleJain Darshan me Praman Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy