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________________ ११४] जैन दर्शन में प्रमाण मोमांसा भगवान् ने चण्डकौशिक और अपने भक्तो को समान दृष्टि से देखा, इसलिए देखा कि उनकी विश्वमैत्री की अपेक्षा दोनो समकक्ष मित्र थे। चण्डकौशिक अपनी उग्रता की अपेक्षा भगवान् का शत्रु माना जा सकता है किन्तु भगवान् की मैत्री की अपेक्षा वह उनका शत्रु नहीं माना जा सकता। इस बौद्धिक अहिसा का विकास होने की आवश्यकता है। ___ स्कन्टक संन्यासी को उत्तर देते हुए भगवान् ने बताया-विश्व सान्त भी है, अनन्त भी। यह अनेकान्त दार्शनिक क्षेत्र में उपयुज्य है। दार्शनिक संघर्ष इस दृष्टि से बहुत सरलता से सुलझाये जा सकते हैं, किन्तु कलह का क्षेत्र सिर्फ मतवाद ही नहीं है। कौटुम्विक, सामाजिक और राजनीतिक अखाड़े संघर्षों के लिए सदा खुले रहते हैं। उनमें अनेकान्त दृष्टि लभ्य बौद्धिक अहिंमा का विकास किया जाय तो बहुत सारे संघर्ष टल सकते हैं। जो कही भय या द्वैधीभाव बढ़ता है, उसका कारण ऐकान्तिक आग्रह ही है। एक रोगी कहे, मिठाई बहुत हानिकारक वस्तु है, उस स्थिति में स्वस्थ व्यक्ति को यकायक, भैपना नही चाहिए। उसे सोचना चाहिए-"कोई भी निरपेक्ष वस्तु लाभकारक या हानिकारक नहीं होती", उसकी लाभ और हानि की वृत्ति किसी व्यक्ति-विशेष के साथ जुड़ने से बनती है। जहर किसी के लिए जहर है, वही किसी के लिए अमृत होता है, परिस्थिति के परिवर्तन में जहर जिमके लिए जहर होता है, उसीके लिए अमृत भी बन जाता है। साम्यवाद पूंजीवाद को बुरा लगता है और पूजीवाद साम्यवाद को, इसमे ऐकान्तिकता ठीक नही हो सकती। किसी में कुछ और किसी में कुछ विशेष तथ्य मिल ही जाते हैं। इस प्रकार हर क्षेत्र में जैन धर्म अहिंसा को साथ लिए चलता है ॥ तत्त्व और आचार पर अनेकान्तदृष्टि "वाल होकर भी अपने को पडित मानने वाले व्यक्ति एकान्त पक्ष के श्राश्रय से उत्पन्न होने वाले कर्मवन्ध को नहीं जानते 31 व्यावहारिक और तात्विक समी जगह अनेकान्त का आश्रयण ही कल्याणकर होता है। एकान्तवाद अाग्रह या संक्लिष्ट मनोदशा का परिणाम है। उससे कर्मवन्ध होता है। अहिंसक के कर्मवन्ध नहीं होता। अनेकान्तदृष्टि मे आग्रह या संक्लेश नहीं होता, इसलिए वह अहिंसा है। साधक को उनी का प्रयोग गया
SR No.010217
Book TitleJain Darshan me Praman Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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