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________________ १०] आराधना या मोक्ष-मार्ग - बन्धन से मुक्ति की ओर, शरीर से आत्मा की ओर, बाह्य-दर्शन से अन्तर- दर्शन की ओर जो गति है, वह आराधना है । उसके तीन प्रकार हैं". ( १ ) ज्ञान-आराधना ( २ ) दर्शन-आराधना ( ३ ) चरित्र - श्राराधना, इनमें से प्रत्येक के तीन-तीन प्रकार होते हैं ( १ ) ज्ञान-आराधना - उत्कृष्ट ( प्रकृष्ट प्रयत्न ) मध्यम् ( मध्यम प्रयत्न ) जघन्य (अल्पतम प्रयत्न ) ( २ ) दर्शन-आराधना ,, 33 (३) चरित्र - आराधनाआत्मा की योग्यता विविधरूप होती है I अत एव तीनों आराधनाओ का प्रयत्न भी सम नहीं होता । उनका तरतमभाव निम्न यंत्र से देखिए - ज्ञान के उत्कृष्ट प्रयत्न में दर्शन के उत्कृष्ट प्रयत्न में चरित्र के उत्कृष्ट प्रयत्न में Ac जैन दर्शन में आचार मीमांसा - है de aties ज्ञान ज्ञान ज्ञान दर्शन दर्शन दर्शन चरित्र चरित्र चरित्र का का का का का का का का का उत्कृष्ट मध्यम अल्पतम उत्कृष्ट मध्यम अल्पतम उत्कृष्ट मध्यम अल्पतम प्रयत्न प्रयत्न प्रयत्न प्रयत्न प्रयत्न प्रयत्न प्रयत्न प्रयत्न प्रयत्न die 33 The de The ac 35 है 33 arc sic/ sc 59 de
SR No.010216
Book TitleJain Darshan me Achar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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