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________________ १२४ ] जैन दर्शन में आचार मीमांसा ६ सम्यक व्यायाम समाधि ७ सम्यक् स्मृति ८ सम्यक् समाधि निर्मल ज्ञान की प्राप्ति के लिए यही एक मार्ग है और कोई मार्ग नहीं ७ । इस मार्ग पर चलने से तुम दुःख का नाश करोगे। विचार बिन्दु महात्मा बुद्ध ने केवल मध्यम-मार्ग का आश्रय लिया। उसमें आपद्-धर्मों या अपवादों का प्राचुर्य रहा। भगवान् महावीर आपद्-धर्मों से दूर होकर चले । काय-क्लेश को उन्होने अहिंसा के विकास के लिए आवश्यक माना। किन्तु साथ-साथ यह भी कहा कि वल, श्रद्धा, आरोग्य, क्षेत्र और काल की मर्यादा को समझकर ही आत्मा को तपश्चर्या में लगाना चाहिए। गृहस्थ-श्रावको के लिए जो मार्ग है, वह मध्यम-मार्ग है। चार सत्य महात्मा बुद्ध ने चार सत्यो का निरूपण व्यवहार की भूमिका पर किया जबकि भगवान्-महावीर के नव तत्त्वो का निरूपण अधिक दार्शनिक है। संसार, संसार-हेतु, मोक्ष और मोक्ष का उपाय-ये चार सत्य पातञ्जल भाष्यकार ने भी माने हैं। उन्होने इसकी चिकित्सा शास्त्र के चार अङ्गो-रोग, रोग-हेतु, आरोग्य और भैषज्य से तुलना की है। महात्मा बुद्ध ने कहा--भिक्षुओ! "जीव (आत्मा) और शरीर भिन्नभिन्न हैं-ऐसा मत रहने से श्रेष्ठ-जीवन व्यतीत नही किया जा सकता। और जीव (आत्मा) तथा शरीर दोनो एक है"-ऐसा मत रहने से भी श्रेष्ठ जीवन व्यतीत नही किया जा सकता। इसलिए भिक्षुओ! इन दोनों सिरे की बातो को छोड़कर तथागत बीच के धर्म का उपदेश देते हैं अविद्या के होने से संस्कार, संस्कार के होने से विज्ञान, विज्ञान के होने
SR No.010216
Book TitleJain Darshan me Achar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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