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________________ १०४] जैन दर्शन में आचार मीमांसा (१) नचिकेता ने सूर्यवंशी शाखा के राजा वैवस्वत यमके पास आत्मा का रहस्य जाना६८। (२) सनत्कुमार ने नारद से पूछा- बतलाओ तुमने क्या पढ़ा है ? नारद वोले-भगवन् ! मुझे ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और चौथा अथर्ववेद याद है, (इनके सिवा ) इतिहास पुराण रूप पाँचवॉ वेद ......आदि-हे भगवन् ! यह सब मैं जानता हूँ। भगवन् ! मैं केवल मन्त्र-वेत्ता ही हूँ, आत्म-वेत्ता नही हूँ। सनत्कुमार प्रात्मा की एक-एक भूमिका को स्पष्ट करते हुए नारद को परमात्मा की भूमिका तक ले गए,यो वै भूमा तत्सुखं नाल्पे सुखमस्ति' । जहाँ कुछ और नहीं देखता, कुछ और नही सुनता तथा कुछ और नहीं जानता वह भूमा है। किन्तु जहाँ और कुछ देखता है, कुछ और सुनता है एवं कुछ और जानता है, वह अल्प है। जो भूमा है, वही अमृत है और जो अल्प है, वही मर्त्य है-'यो वै भूमा तदमृतमथ यदल्पं तन्मय॑म् ६९ । (३) प्राचीनशाल आदि महा गृहस्थ और महा श्रोत्रिय मिले और परस्पर विचार करने लगे कि हमारा आत्मा कौन है और ब्रह्म क्या है ?'को न अात्मा किं ब्रह्मेति'? वे वैश्वानर आत्मा को जानने के लिए अरुण पुत्र उद्दालक के पास गए। उसे अपनी अक्षमता का अनुभव था। वह उन सवको कैकेय अश्वपति के पास ले गया। राजा ने उन्हे धन देना चाहा। उन मुनियो ने कहा-हम धन लेने नहीं आये हैं। आप वैश्वानर-आत्मा को जानते हैं, इसीलिए वही हमें बतलाइए। फिर राजाने उन्हे वैश्वानर-आत्मा का उपदेश दिया। काशी नरेश अजातशत्रु ने गार्य को विज्ञानमय पुरुष का तत्त्व समझाया। (४) पांचाल के राजा प्रवाहण जैवलि ने गौतम ऋषि से कहा-गौतम ! तू जिस विद्या को लेना चाहता है, वह विद्या तुझसे पहले ब्राह्मणो को प्राप्त नही होती थी। इसलिए सम्पूर्ण लोको में क्षत्रियो का ही अनुशासन होता रहा है७२ । प्रवाहण ने आत्मा की गति और आगति के बारे में पूछा। वह विषय वहुत ही अज्ञात रहा है, इसीलिए आचारांग के प्रारम्भ में कहा गया है-"कुछ लोग नही जानते थे कि मेरी आत्मा का पुनर्जन्म होगा
SR No.010216
Book TitleJain Darshan me Achar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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