SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय परिवर्त जैन साहित्य और आचार्य साहित्य संस्कृति का उद्वाहक तत्त्व है । संस्कृति के हर कोने को साहित्य के बन्तस्तल में देखा जा सकता है । जैन साहित्य की विविधता और प्राञ्जलता में उसकी संस्कृति को पहचानना कठिन नहीं । जैनाचार्यों ने अपने आपको लौकिक जीवन से समरस बनाये रखा । इसके लिए उन्होंने प्राकृत और अपभ्रंश जैसी लोक-भाषाओं किंवा बोलियों को अपनी अभिव्यक्ति का साधन स्वीकार किया । आवश्यकता प्रतीत होने पर उन्होंने संस्कृत को भी पूरे मन से अपनाया। यहां हम जैनाचार्यों द्वारा प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश तथा आधुनिक भारतीय भाषाओं में रचित साहित्य का एक अत्यन्त सक्षिप्त सर्वेक्षण प्रस्तुत कर रहे हैं। भाषा और साहित्य : . भाषा और साहित्य संस्कृति के अविच्छन्न अंग है, उसके अजस्र स्रोत हैं । अभिव्यक्ति के साधनों में उनका अपना अनुपम स्थान है । समय और परिस्थिति के थपेड़ों में नया धर्म और नयी भाषा का जन्म होता है । समाज की बदलती दीवारें और उनकी अकथ्य कहानी को अचूक रूप से प्रस्तुत करने वाले ये दो ही प्रतिष्ठित रूप हैं जिन्हें सदियों तक स्वीकारा जाता है । भाषा विचारों का प्रतिबिम्ब है जिन्हें सुघढ़ता पूर्वक कागद पर अंकित कर दिया जाता है । पाठक के लिए अनदेखी घटनायें सद्यः घटित-सी दिखाई देने लगती हैं । प्राकृत भाषाओं में लिखा साहित्य इसी प्रकार की अनुभूतियों और जिज्ञासामों से आपूरित है। उनका हर पन्ना एक क्रान्तिकारी विचारधारा के विभिन्न पहलुओं से रंगा हुआ है । कहीं वह दकियानूसी और मूढ़ता से सने तपापित सिद्धान्तों का खण्डन करता हुआ दिखाई देता है तो कहीं संसार के बने पीड़ा भरे जंगलों में भटकते हुए प्राणी को सम्यक् दृष्टि से सिञ्चित चिरन्तन अध्यात्म का संदेश प्रचारित करते हुए नजर आता है । यह बहुल हिंसा-अहिंसा की परिभाषा बनाने वाली संस्कृति का विरोध भी यहां मुखरित हुआ है। बहिंसा की उत प्राचीन उगमगाती दीवार को तोड़कर नया प्रासाद बड़ा करने का उपक्रम इन दोनों भाषाओं के साहित्य में स्पष्ट ससकता है । समानता, वात्मशक्ति का वर्चस्व, श्रम को प्रतिष्ठा, सम्यक् दर्शन-शान-बारित का
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy