SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 425
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०१ शिक्षक में उपर्युक्त सभी गुणों का समावेश होना चाहिए। जिनसेन मे शिक्षक के बावश्यक गुणों को इस प्रकार दर्शाया है १. सदाचारिता २. नियात्मकता (स्थिरबुद्धि) ३. जितेन्द्रियता ४. अन्तरंग और बहिरंग की सौम्यता ५. व्याख्यानशक्ति की प्रवणता ६. सुबोधव्याख्या शैली ७. प्रत्युत्पन्न मतित्व ८. तार्किकता ९. दयालुता १०. पाण्डित्य ११. शिष्यके अभिप्राय को अवगत करने की क्षमता १२. अध्ययनशीलता १३. विद्वत्ता १४. वाङमय के प्रतिपादन की क्षमता १५. गम्भीरता १६. स्नेहशीलता १७. उदारता और विचार समन्वय की शक्ति १८. सत्यवादिता १९. सत्कुलोत्पन्नता २०. अप्रमत्तता, और २१. परहितसाधनपरता ऐसे शिक्षकों में पूर्णकाश्यप, मक्खलि गोसाल, अजितकेसकम्बलि, पकुधकच्चायन, संजयवेलट्ठिपुत्त, निगण्ठनातपुत्त एवं सिद्धार्थ गौतम का नाम विशेष उल्लेखनीय है। ये सभी आचार्य गणाचार्य, सर्वज्ञ और सर्वदी थे। १. गाविपुराण में प्रतिपादित भारतीय संस्कृति, पृ. २६५; भगवती बाराधना (७९-४८३) में शिष्यों के दोषों का निग्रह करने वाला गुरु यदि कठोर भी है तो यह सम्माननीय माना गया है।
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy