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________________ ३९७ ९. दूसरों के दोषों को अभिव्यक्त न करना १०. मित्रों पर क्रोध न करना ११. अप्रिय मित्र किंवा शत्रु के प्रति भी परोक्ष में भी कल्याण भावना रखना १२. कलह और हिंसा से दूर रहना १३. ज्ञान की खोज में लगे रहना १४. लज्जावान होना, और १५. सहिष्णु होना तथा इन्द्रिय और मन पर विजय प्राप्त करना। उत्तराध्ययन के प्रथम अध्याय में विनीत शिष्य के प्रमुख गुणों का आकलन इस प्रकार किया जा सकता है१. गुरु की आज्ञा और निर्देश का पालन करना २. शुश्रूषा ३. आत्महित की इच्छा ४. शील-सदाचार का पालन ५. प्रशान्तवृत्ति ६. वाचालता का अभाव ७. क्रोधी न होना ८. क्षमाशील होना • ९. स्वाध्याय और ध्यान करना १०. अकरणीय कार्य को मछपाना ११. सत्यवादी होना १२. बिना पूछे न बोलना १३. आचार्य के प्रतिकूल न बोलना १४. कठोरवचन न बोलना १५. अनुशासन का पालन करना १६. आचार्य का समुचित आदर करना आचार्य जिनसेन ने आगम और आगमेतर ग्रन्थों का मनन-चिन्तन कर आदिपुराण में शिक्षार्थी के गुणों का व्याख्यान इस प्रकार किया है१. जिज्ञासावृत्ति (१.१६८) २. श्रद्धा-अध्ययन और अध्यापक दोनों के प्रति आस्था (१.१६८) ३. विनयशीलता (१.१६८) १. आदिपुराण में प्रतिपावित भारतीय संस्कृति, पृ. २६४
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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