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________________ विधवा-विवाह का प्रचलन नहीं था। उनका जीवन आध्यात्मिक कार्यों में मधिक अस्त रहता था। कुलमिलाकर यह कहा जा सकता है कि नारी की स्थिति समाज में अच्छी थी। यद्यपि साधकों ने नारी की घनघोर निन्दा भी की है पर वह इस दृष्टि से हुई है कि कामवासना के कारण पुरुषवर्ग नारीवर्ग की ओर आकर्षित हो जाता है और फलतः वह आध्यात्मिक क्षेत्र से दूर भाग जाता है । यह तो वस्तुतः पुरुषवर्ग की कमजोरी का ही निदर्शक है। इसे नारीवर्ग की हीन स्थिति का सूचक नहीं कहा जा सकता। उसे तो वस्तुतः पुरुष के समकक्ष माना गया है। २. जैन शिक्षा पद्धति शिक्षा व्यष्टि और समष्टि के उत्कर्ष की भूमिका से अनुप्राणित होती है। व्यष्टि समष्टि का निर्माण करता है और उसका एक घटक बनकर अपने मूल उद्देश्य की प्राप्ति में संलग्न रहता है । यह मूल उद्देश्य है- आत्मा की चरम विशुद्ध अवस्था को प्राप्त करना अर्थात् आध्यात्मिक चरमपद की उपलब्धि करना। भौतिक सामग्रियों को एकत्रित करना और उनको सुख का साधन मानकर उनमें आसक्त रहना भी शिक्षा का उद्देश्य रहता है। परन्तु यह भौतिक शिक्षा का उद्देश्य हो सकता है। उससे शाश्वत सुख की उपलब्धि नहीं हो सकती। हर व्यक्ति मृग-मरीचिका के पीछे वेतहाशा दौड़ लगाता रहता है। फिर भी उसकी इच्छायें और अतृप्त वासनायें कभी शान्त नहीं हो पाती। फलतः साध्य-साधनों में निर्मलता न रहने से भटकाव और टकराव ही उसके हाथ आते हैं। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि सांसारिक विषय वासनात्मक साधनों को उपलब्ध करना शिक्षा का मूल उद्देश्य कभी नहीं रहा। वह आनुसङ्गिक हो सकता है और होता है पर “सा विद्या या विमुक्तये" की परिभाषा जहाँ घटित नहीं होती उसे शिक्षा नहीं कहा जा सकता। भारतीय संस्कृति अध्यात्ममूलक संस्कृति है और उसमें भी श्रमण संस्कृति की जैन विचारधारा पूर्णत: विशुद्ध साधनों पर आधारित है। अतः यहाँ शिक्षा आध्यात्मिक उन्नति को लेकर ही आगे बढ़ती है। महावीर की समत्व दृष्टि ऐसी ही शिक्षा की स्थापना में लगी रही। जैनागमों में इसी दृष्टिका पल्लवन हुआ है। शिक्षार्थी बार शिक्षक के स्वरूप को भी यहाँ स्पष्ट करते हुए उनपर एकात्मक दृष्टिकोण से विचार किया गया है।
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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