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________________ ३६९ भारत : आरम्भिक कालीन जैन मन्दिर दक्षिण भारत में भी प्राप्य नहीं । वहाँ सातवीं शादी से उनका निर्माण हुआ है । यद्यपि इसके पूर्व के उल्लेख पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। पल्लव नरेश नरसिंहवर्मन् प्रथम मामल्ल (६६० - ६६८ ई.) ने ग्रेनाइट नाइस पत्थर की चट्टानों को काटकर शैलोत्कीर्ण मन्दिरों की निर्माण शैली प्रारम्भ की। महाबलीपुरम् के रथमन्दिर इसके उदाहरण है । इन मन्दिरों के बाह्य अलंकार को ईंट-लकड़ी से निर्मित भवन की रूपरेखा देने के लिए अखण्ड चट्टान nt उपर से नीचे की ओर काटा जाता था और फिर उत्खनन करके मंडप तथा गर्भगृह के विभिन्न अंग उत्कीर्ण किये जाते थे । कालातंर में यह परम्परा छोड़ दी गई और बलुए प्रस्तर खंड काटकर मंदिर बनाये जाने लगे । इस प्रकार के शैलोत्कीर्ण मंदिर विजयवाडा, धमनर, ग्वालियर, कोलगांव आदि स्थानों पर मिलते है । राष्ट्रकूटकाल में एलोरा की गुफा नम्बर ३० निर्मित हुई जिसे छोटा कैलास कहा जाता है। इसमें भी अखंड शिला मंदिर समूह की रचना हुई है । तमिलनाडु के शैलोत्कीर्ण गुफा मंदिर सातवी शताब्दी से मिलते हैं । साधारणतः ये पर्वतश्रेणियों पर बनाये गये हैं । ये मंदिर गुफायें ईट और गारे से बनाये गये हैं । बाद में ये ब्राह्मणों द्वारा अधिकृत कर लिये गये । इनका आकार-प्रकार विमान शैली लिये हुए है । आयताकार मंडप के साथ अलंकृत स्तम्भ है । पार्श्वभित्तियों में अनेक देव-कोष्ठ उत्कीर्ण है । सर्वाधिक प्राचीन जैन मुक्का मंदिर तिरुनेलवेली जिले में मलैयडिक्कुरिच्चि स्थान पर है जिसे बाद में शिवमंदिर में परिवर्तित कर दिया गया । इस प्रकार का परिवर्तन मदुरै और आमले आदि जैन केन्द्रो का भी हुआ है । दक्षिणापथ के शित्तन्नवासल का विशिट मंडप शैली में बना शैलोत्कीर्ण जैन गुफा मंदिर है। उसके भीतर चौकोर गर्भगृह और मडप है जिनकी भित्तियां और छत मूर्तियों से अलंकृत हैं । इस काल में दक्षिणापथ मे प्रस्तार मंदिरों का भी निर्माण हुआ । उल्लेखनीय है । पुलकेशी द्वितीय का शैलीत्कीर्ण गुफा मंदिरों के अतिरिक्त इसमें ऐहोले का मेगुटी मंदिर विशेष पुरालेख यही मिला है जिसे आचार्य कीर्ति ने लिखा है। इस मंदिर में बंद-मंडप प्रकार का चौक है जिसमें मध्य के चार स्तम्भों के स्थान पर गर्भगृह हैं। पार्श्व में दो आयताकार कक्ष है । इन भक्षों में शासन देवी-देवताओं आदि की अलंकृत मूर्तियाँ है । इसी प्रकार का एक मंदिर हल्लूर (भागलकोट) में भी पाया गया है । ऐहोले में और भी अनेक कुल शैली में बने मंदिर है ।
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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