SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 382
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५८ प्राप्त मुनिसुव्रतनाथ की मूर्ति पर यूवे देवनिमिते' लिखा मिला है जो स्तूप की प्राचीनता को प्रमाणित करता है । कंकाली टीले से प्राप्त सामग्री लखनऊ और मथुरा संग्रहालयों में सुरक्षित है। आयागपट्टों के अतिरिक्त अनेक सरदल, स्तम्भ, वेदिकायें, तोरणद्वार, उष्णीष, प्रस्तर, टोडे, शालभंजिकायें, मंदिर औरबिहार मिले हैं । यह अभी तक निश्चित नहीं हो सका कि यहां का बिहार अर्ध वृत्ताकार था अयवा अण्डाकार अथवा चतुर्भुजाकार। बिहार के निर्माण में ईटों का प्रयोग हुआ है और स्तम्भों आदि के लिये पत्थर का । पत्थरों पर अनेक प्रकार का शिल्पांकन हुआ है। यह सब कुषाण कालीन है । अनेक शिलालेख भी इस काल के मिले हुए हैं। मथुरा के स्तूप से पूर्ववर्ती स्तूप अभी तक कोई नहीं मिला । वैशाली में मुनिसुव्रतनाथ के स्तूप होने की सूचना अवश्य मिलती है पर यह स्तूप अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ। चतुर्थ से षष्ठ शताब्दी के बीच मथुरा में जैनधर्म को लोकाश्रय तो मिला पर राजाश्रय नहीं मिल सका । इसलिए मन्दिरों का आधिक्य नहीं है । आयागपट्ट, सरस्वती, शासनदेवी-देवताओं आदि की प्रतिमायें नहीं मिलतीं । मन्दिरों का निर्माण भी प्रायः नहीं हुआ। मूर्तियाँ अवश्य उपलब्ध हुई हैं।' २. जैन गुफायें प्रारम्भिक गुफायें: साधारणतः गुफाओं का प्रयोग साधना के लिए किया जाता था। प्रारम्भ में उनका उपयोग प्राकृतिक अवस्था में होता था पर बाद में उन्हें संस्कारित किया जाने लगा। कला का उदघाटन संस्कारित होने पर ही हो सका। अभी प्राचीनतम तीन गुफासमह गया बराबर और नागार्जुनी पहाड़ियों के पास प्राप्त हुबा है जिसकी पुरालिपि उसे ई. पू. तृतीय शती की सिद्ध करती है। ये गुफायें वैसे तो आजोविक सम्प्रदाय के लिए अशोक द्वारा भेंट की गई थीं पर आजीविक सम्प्रदायका सम्बन्ध दिगम्बर जैन सम्प्रदाय से अधिक रहा है। अतः उनका उल्लेख यहां किया जा सकता है। वास्तविक रूप में प्राचीनतम जैन गुफाओं के रूप में हम उदयगिरि बोर खण्डगिरि गुफाओं का उल्लेख कर सकते हैं । महामेषवाहन के काल में इन १. विशेष देखिये- मथुरा, श्रीमती देवला मित्रा व एन. पी. जोशी.
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy