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________________ ३५२ स्वप्नः तीर्थकरों की प्रतिमाओं के साथ ही उनकी माताओं द्वारा देखे गये सोलह अथवा चौदह स्वप्नों को भी अंकित किया जाता रहा है। सोलह स्वप्न विगम्बर परम्परा द्वारा मान्य हैं और चौवह स्वानोको श्वेताम्बर परम्परा स्वीकार करती है। ये दोनों परम्परायें इस प्रकार हैं। दिगम्बर परम्परा श्वेताम्बर परम्परा १. ऐरावत गज १. ऐरावत गज २. वृषभ २. वृषभ ३. सिंह ३. सिंह ४. गजलक्ष्मी ४. गजलक्ष्मी ५. माल्यद्विक ५. पुष्पमाला ६. चन्द्र ७. सूर्य ७. सूर्य ८. पूर्ण कुम्भयुग्म ८. कलश ९. मीनयुगल ९. मीनयुगल १०. सागर १०. पद्मसरोवर ११. सिंहासन ११. विमान १२. देव विमान १२. रत्नपुञ्ज १३. नाग विमान १३. क्षीरसागर १४. रत्नराशि १४. अग्निपुञ्ज १५. कमल १६. निधूम अग्नि मूतिचिन्ह, चैत्यमावि प्राचीन काल में साधारणतः जिन-प्रतिमानों पर कोई चिन्ह नहीं होते थे। परन्तु गुप्तकाल तक आते-आते चिन्हों की निर्धारणा हो गई जिससे प्रतिमानों को सरलता पूर्वक पहचाना जा सके। इतना ही नहीं, बल्कि जिनम्वतों के नीचे
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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