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________________ ३४० लगभम पांच सौ विभिन्न मतावलम्बियों का निवास था। वहीं गिरि नामक एक निगण्ठ भी रहता था।' पांच सौ परिवारों का रहना और निग्रन्थों के लिए बिहार का निर्माण कराना स्पष्ट सूचित करता है कि श्रीलंका में लगभग तृतीय-चतुर्थ शती ई.पू. में जैनधर्म अच्छी स्थिति में था। बाद में तमिल आक्रमण के बाद वडगामणि अभय ने निगण्ठों के बिहार आदि सब कुछ नष्ट-भ्रष्ट कर दिये।' महावंश टीका के अनुसार खल्लाटनाग ने गिरिनिगण्ठ के बिहार को स्वयं नष्ट किया और उसके जीवन का अन्त किया।' जैन परम्परा के अनुसार श्रीलंका में विजय के पहुंचने के पूर्व कहाँ यक्ष और राक्षस नहीं थे बत्कि विकसित सभ्यता सम्पन्न मानव जाति के विद्याधर थे जिनमें जैन भी थे। श्रीलंका की किष्कन्धा नगरी के पास त्रिकूटगिरि पर जैन मन्दिर था जिसे रावण ने मन्दोदरि की इच्छा पूर्ति के लिए बनवाया था।' कहा जाता है कि पार्श्वनाथ की जो प्रतिमा आज शिरपुर (वाशिम) में रखी है वह वस्तुतः श्रीलंका से माली-सुमाली ले आये थे।' करकण्ड चरिउ में भी लंका में अमितवेग के भ्रमण का उल्लेख मिलता है और रावण द्वारा निर्मित मलय पर्वत पर जैन मन्दिर का भी पता चलता है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि श्रीलंका में जैनधर्म का अस्तित्व वहाँ बौद्धधर्म पहंचने के पूर्व था और बाद में भी रहा है। तमिलनाडु के तिरप्परंकुरम (मदुरै जिला) में प्राप्त एक गुफा का निर्माण भी लंका के एक गृहस्थ ने कराया था, यह वहाँ से प्राप्त एक ब्राह्मी शिलालेख से ज्ञात होता है।' बर्मा तथा अन्य देश : बर्मा को सुवर्ण भूमि के नाम से प्राचीन काल में जाना जाता था। कालकाचार्य ने सुवर्ण भूमि की यात्रा की थी। ऋषभदेव ने बहली (बेक्ट्रिमा) १ महावंस, पृ. ६७ २. वही, ३३-७९ ३. महावंशटीका, पृ. ४४४ ४. हग्विंशपुराण, पउमचरिउ आदि ग्रन्थ देखिये । ५. विविध तीर्थकल्प, पृ. ९३ ६ वही, १०२ ७. करकण्ड परिउ, प.४-६९ ८. जैनकला बोर स्थापत्य, भाव १, १. १०२ ९. उत्तराध्ययन, नियुक्ति गापा, १२०; बृहस्वास्स भाबमाण-पृ.७३-७५
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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