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________________ ३२८ है। हयवंश ने क्रमशः ग्वालियर और त्रिपुरी को जैन संस्कृति की दृष्टि से समृद्ध किया है। त्रिपुरी (जबलपुर का समीपवर्ती तेवर नामक ग्राम) वैदिक, जैन और बौद्ध, इन तीनों संस्कृतियों का संगम रहा है। पुरातत्व में प्राप्त प्रमाणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वहाँ जैनधर्म बहुत अच्छी स्थिति में था। उत्खननमें और मंदिरों में जो जैन मूर्तियां मिली है उनमें तीर्थकर ऋषभदेव तथा नेमिनाथ, चक्रेश्वरी देवी और यक्षी पद्मावती की प्रतिमायें विशेष उल्लेखनीय है। तेवर के बालसागर नामक सरोवर के मध्य में स्थित एक मंदिर में एक उत्कृष्ट अभिलिखित शिल्पपट्ट सुरक्षित है। उसमें पार्श्वनाथ और पद्मावती का अंकन है। तेवर से ही प्राप्त एक तोरण द्वार से जैन स्थापत्य की विशेषता लक्षित होती है। एक खण्डित जैन प्रतिमा के पीठ पर उत्कीर्ण अभिलेख से पता चलता है कि उसे जसदेव और जसधवल ने कल्चुरी सं. ९००, ई. स. ११४९ में बनवाया था। वे मूलतः मथुरा के निवासी थे। यहाँ प्राप्त एक अन्य तोरण द्वार में ध्यान मुद्रा में आसीन जिनों का भी अंकन है। इस विवरणसे यह स्पष्ट है कि त्रिपुरी लगभग दशवीं शती में एक महत्वपूर्ण जैन केन्द्र के रूप में विश्रुत था। मेरूतुंग ने प्रबन्ध चिन्तामणि (पृ.-४९-५०) में त्रिपुरी के सम्राट कर्ण के विषय में कुछ विशेष जानकारी दी है। वहीं उन्होंने कर्ण के कुछ दरबारी प्राकृत कवि विद्यापति, नाचिराज आदि की रचनाओंका भी संकलन किया है। संस्कृत, प्राकृत, और अपभ्रंश के कवि कर्ण के दरबार को सुशोभित करते थे। करकण्डुचरिउ के रचयिता मुनि कनकामर, श्रुतकीर्ति आदि विद्वान कलचुरी राजाओं के ही आश्रय में रहे है ।' गुजरात और काठियावाड़ जैन परम्परा की दृष्टि से गुजरात महावीर के बहुत पहले से ही जैनधर्म से सम्बद्ध रहा है। अरिष्टनेमि का निर्वाण गिरिनार पर्वत पर हुआ था। चन्द्रगुप्त मौर्य ने यहाँ भिक्षुओं के लिए एक बिहार बनवाया था। भद्रबाहु भी दक्षिण की ओर इसी मार्ग से गये थे। धरसेनाचार्य उपर्युक्त बिहार में रुके थे और पुष्पदन्त तथा भूतबलि को जैनागम लिखने के लिए प्ररित कर गये थे। लगभग तृतीय शताब्दी में नागार्जुन सूरिने बल्लभी में एक संगीति का आयोजन १. विशेष देखिये-त्रिपुरी में जैनधर्म डॉ. अषयमित्र शास्त्री,चिदानन्द स्मृति ग्रन्य द्रोणगिरि पृ. १५१-१५३ तवा त्रिपुरी, भोपाल, १९७१, ५ ११४.
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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