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________________ बिम्बिसार का उल्लेख जैन साहित्य में श्रेणिक नाम से अधिक हुमा है। उसके बाद उसका पुत्र अजात शत्रु (कुणिक) और फिर उदायी राजा हुआ। ये सभी राजा महावीर के उपासक रहे हैं और उन्होंने उनके धर्म प्रचार में विविध योगदान दिया है।' नन्दवंश (ई.पू. ५ वीं शती से ई.पू. ३ री शती तक): शिशुनागवंश के उत्तराधिकारी नन्द राजा हुए। नन्द वंश का राजा नन्दिवर्धन कलिंग पर आक्रमणकर कलिगजिन (ऋषभदेव) की मूर्ति को मगध ले आया। नौ नन्द राजा का मंत्री शकटाल जैनाचार्य स्थूलभद्र का पिता था। अतः मगध और कलिंग को जैन केन्द्रों के रूप में स्वीकार किया गया है। लगभग ई. पू. प्रथम शती में चेदिवंशीय महाराजा खारवेल मगध पर आक्रमण कर ऋषभ जिन की मूर्ति को वापिस कलिंग ले आया। यह हाथी गुम्फा शिलालेख से ज्ञात होता है। उत्तर काल में भी मगध और कलिंग जैन केन्द्र बने रहे हैं। मौर्य साम्राज्य (ई.पू. ३१७ से ई.पू. १८४): नन्दों के उत्तराधिकारी मौर्य राजा हुए। मौर्य राजाओं में जैन साहित्य के अनुसार चन्द्रगुप्त, बिन्दुसार, अशोक, कुणिक, सम्प्रति और दशरथ जैनधर्मानुयायी थे। दुभिक्ष काल में भद्रबाहु कर्णाटक पहुंचे जहाँ जाकर चंद्रगुप्त ने जिनदीक्षा ग्रहण की। आज भी उस पहाड़ी को 'चंद्रगिरि' कहते हैं। दक्षिण में जैनधर्म का प्रचार प्रथमतः इसी समय हुआ। बिन्दुसार और अशोक ने जैनधर्म को काफी प्रश्रय दिया। सम्प्रति को 'परम अर्हत्' कहा गया है। उसने अनेक जैन मंदिरों का निर्माण कराया और उज्जैन में जैन उत्सवों को मनाने की परम्परा प्रारंभ की। वह आर्य सुहस्ति का शिष्य था। लोहानीपुर (पटना) से प्राप्त जिनमति से पता चलता है कि मौर्यकाल में जैनधर्म जनधर्म हो गया था। सुंगकाल (ई.पू. १८४ से ७४): यह काल वैदिक धर्म का पुनरुद्धार काल कहा जा सकता है । इस वंश का संस्थापक पुष्यमित्र जैनों और बौद्धों से द्वेष करने वाला था। कलिंग नरेश खारवेल ने संभवतः इसी लिए मगध पर आक्रमण कर ऋषभदेव की प्रतिमा को वापिस १. त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र, ६. १६१-१८१; उत्तराध्ययन, वीसी अध्याय २. आवश्वक सूत्र, ४३५-६ ३. आवश्यक सूत्र, ४३५-६ ४. सम्प्रति के भाई सालिशुक ने सौराष्ट्र में जैनधर्म का प्रचार-प्रसार किया, (इन्डियन हिस्टोरिकल क्याटी, १६, १९४०.)
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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