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________________ ३२४ नालन्दा ऐसे स्थल थे जहां जैनधर्म अधिक लोकप्रिय था । बुद्ध को यहाँ निगण्ठों से बहुत लोहा लेना पड़ा। राजगृह की समीपवर्ती कालशिला (इसिगिलि) पर्वत पर कठोर तपस्या करते हुए बुद्धने जैन साधुओं को देखा और उनकी तीव्र आलोचना की। फिर भी उन्होंने जैन धर्म को नहीं त्यागा। परन्तु उपालि गहपति,' अभयराजकुमार' असिबन्धकपुत्त गामणि आदि जैन श्रावकों को निश्चित ही बुद्ध ने अपनी ओर खींच लिया। जो भी हो, मगध जैनधर्म का केन्द्र था, यह इन सन्दर्भो से संपुष्ट होता है । वज्जि गणतंत्र के प्रमुख राजा चेटक और उनकी राजधानी वैशाली, तथा मगध सम्राट श्रेणिक और उनकी साम्राज्ञी चेलना जैनधर्म के प्रधान अनुयायी थे। कौशल में बद्धने लगभग २१ वर्ष व्यतीत किये। महावीर ने भी यहाँ अनेक बार भ्रमण किया। अयोध्या, सावत्थि (श्रावस्ती) और साकेत जैनधर्म के केन्द्र रहे हैं। श्रावस्ती के श्रेष्ठी मिगार और कालक महावीर के भक्त रहे है। कपिलवस्तु यद्यपि बुद्ध का जन्म स्थान था पर यहाँ भी जैनधर्म का काफी प्रचार था । बुद्ध और उनका परिवार भी सम्भवतःप्रारम्भ में पार्श्वनाथ परम्परा का अनुयायी था। बाद में बुद्ध ने उसे अपने धर्म में परिवर्तित कर लिया। महानाम इसी का उदाहरण है। देवदह भी एक जैन केन्द्र था जिसे बुद्धने अपने प्रभाव में लेने का प्रयत्न किया। लिच्छवि गणतन्त्र की प्रधान नगरी वैशाली तो महावीर का जन्मस्थान ही था। पावा और कुसीनारा के मल्ल भी निगण्ठ नातपुत्त के अनुयायी थे। पावा में निगण्ठनातपुत्त के निर्वाण होने पर मल्लों और लिच्छवियों ने उनके सन्मान में दीप जलाये थे। वाराणसी, मिथिला, सिहभूमि, कौशाम्बी, अवन्ती आदि स्थान भी जैनधर्म के प्रचार स्थल रहे है । महावीर ने केवल ज्ञान की प्राप्ति के बाद बिहार, बंगाल, उत्तरप्रदेश आदि स्थानों का भ्रमण किया और अपने सिद्धान्तों का प्रचार-प्रसार किया। इस संदर्भ में उन्हें चेटक, उदयन, दधिवाहन, चण्ड प्रद्योत, नन्दिवर्धन, बिम्बिसार आदि राजाओं से भी अपेक्षित सहयोग मिला। १. मजिम निकाय, प्रथम भाग, पृ. ३१, ३८०. २. वही, ३७१ ३. वही, पृ. ३९२ ४. संयुत्तनिकाय, माग, ४, पृ. ३२२ ५. मज्झिमनिकाय, प्रथम भाग, पृ. ९१ ६. वही, द्वितीय भाग, पृ. २१४ ७. वही, पृ. २४३
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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