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________________ ___२३४ २४ ३. स्यादस्ति नास्ति च ४. स्यादवक्तव्यम् ५. स्यादस्ति चावक्तव्यम् ६. स्यानास्ति चावक्तव्यम्, और ७. स्यादस्ति नास्ति चावक्तव्यम् ये सात भंग प्रश्न संख्या पर आधारित हैं। प्रश्नों की संख्या सात है । अतः उत्तर भी सात हैं। मूल भंग अस्ति, नास्ति अस्ति-नास्ति अथवा अवक्तब्य हैं। शेष भंग इन्हीं तीन भंगों के संयोग से निर्मित हुए हैं। उनके संयोग से निर्मित प्रश्न और उनके उत्तरों की संख्या सात की संख्या का अतिक्रमण नहीं कर सकती। 'कचित्' घट है इत्यादि वाक्य में सत्व आदि सप्त भंग इस हेतु से हैं कि उनमें स्थिति-संशय भी सप्त हैं और सप्त संशय के लिए जिज्ञासाओं के भेद भी सप्त हैं। और जिज्ञासाओं के भेद से ही सप्त प्रकार के प्रश्न और उत्तर भी हैं।' ये सात भंग इस प्रकार हैं १ स्याबस्ति घट:-जिस वस्तु का अस्तित्व है उसका अस्तित्व उसके अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से है, इतर द्रव्यादि से नहीं क्योंकि वे अप्रस्तुत हैं। स्वरूप के ग्रहण और पररूप के त्याग से ही वस्तु की वस्तुता स्थिर की जाती है। यदि पररूप की व्यावृत्ति न हो तो निःस्वरूपत्व का प्रसंग होने से वह खर-विषाण की तरह असत् ही हो जायेगा। इसी प्रकार मनुष्य जीव भी स्व द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की दृष्टि से ही अस्ति रूप है, अन्य रूपों से नास्ति है । यदि मनुष्य अन्य रूप से भी 'अस्ति' हो जाये तो वह मनुष्य ही नहीं रह सकता, महासामान्य हो जायगा। २. स्थानास्ति घट :-कथञ्चित् घट नहीं है' इस द्वितीय भंग से यह सिद्धान्त स्थिर होता है कि घट अन्य द्रव्य, अन्य क्षेत्र, अन्य काल और अन्य भाव रूप की अपेक्षा नास्ति रूप है। यदि यह भंग न माने तो वह घट ही सिद्ध नहीं हो सकता क्योंकि नियत द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव रूप से वह नहीं है जैसे गधे के सींग । प्रत्येक वस्तु स्वरूप से विद्यमान है, पररूप से विद्यमान नहीं १. मनास्सरवादयस्सप्त संशयास्सप्ततद्गताः । जिज्ञासाःसप्त सप्त स्युः प्रश्नाःसप्तोत्तराण्यति ॥ सप्तमंगतरंगणी, ८ पर उपत अकलंक मादि कुछ आचार्यों ने 'स्यादवक्तव्यम्'को तृतीय बोर स्यादस्ति न्यस्ति को चतुर्वमंग माना है।
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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