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________________ १४६ बागे चलकर उत्तराध्ययन में पुद्गल की और अधिक स्पष्ट व्यास्या मिलती है। वहीं पुद्गल के अन्तर्गत शब्द, अन्धकार, प्रकाश, छाया, आतप, वर्ण, रसः गन्ध, स्पर्श आदि का भी समावेश कर दिया गया है । सद्दन्वयारउज्जोजो पहा छायातवेइ वा । वण्णरसगन्धफासा पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥ पुद्गल के स्वरूप-बोध की तृतीय विकासात्मक स्थिति उमास्वामी के. तत्त्वार्थ सूत्र में दिखाई देती है जहाँ वे स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण वाले तत्व को 'पुद्गल' कहते हैं । शब्द, बन्ध, सूक्ष्म, स्थूल, संस्थान, भेद, तम, छाया, आतप, उद्योत आदि उसकी पर्यायें है ।" यह गुणों की अपेक्षा से पुद्गल का स्वरूपकपन है । उमास्वामी की व्याख्या को उनके उत्तरवर्ती आचार्यों ने और अधि विश्लेषित करने का प्रयत्न किया । अकलंक उनमें प्रमुख हैं। उन्होंने तत्वार्थवार्तिक में बड़ी सूक्ष्मता से उसपर विचार किया है। तदनुसार स्पर्श के आठ भेद हैं-मृदु, कठिन, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष । रस पांच प्रकार का होता है-- तिक्त, कटु, अम्ल, मधुर और पाम । सुमन्ध और दुर्गन्ध के भेद से गन्ध दो प्रकार की है और नीम, पीत, शुक्ल, कृष्ण और लोहित के भेद से रूप पाँच प्रकार का है। इस प्रकार पुद्गल के बीस भेद होते हैं । इन स्पर्शादि के भी संस्थात, असंस्थात, भीर मनन्त गुण परिणाम होते हैं । ये पुद्गल के विशेष गुण हैं । पुद्गल द्रव्य रूपी अर्थात् मूर्तिक होता है । वह इन्द्रियों के द्वारा ग्रहणी है | शरीर, वचन, मन और श्वासोच्छवास पुद्गल के उपकार हैं । भदाल, वैविक, आहारक, तैजस और कार्माण शरीर पौद्गलिक हैं । कार्माणि शरीर निराकार होने पर भी पौद्गलिक है क्योंकि वह मूर्तिमान पुद्गलों के सम्बन्ध अपना फल देता है । जैसे धान्य, पानी, धूप आदि मूर्तिमान् पुद्गल द्रव्यों के सम्बन्ध से फर्मों का विपाक होता है अतः ये पौगलिक हैं। कोई भी मूर्तिमान् पदार्थ के सम्बन्ध से नहीं पकता । शब्द भी मूर्तिमान् इन्द्रिय के द्वारा ग्राहथ होता है । पानी की तरह उसे रोका भी जा सकता है। वायु के द्वारा रुई की तरह एक स्थान से दूसरे स्थान को प्रेरित भी किया जा सकता है । मन द्रव्य दृष्टि से स्थायी है और पर्यान १. उत्तराध्ययन, २८-१२ २. स्परन्येवन्तः पुद्गलः, तत्वार्थसून ५-२१: यन्यसम्पत्त्यान भेदतमल्कापातपोद्योतनन्तरच, नही, ५.२५, उत्तराध्यपक का० १२८.८: मवाद १-१५.
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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