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________________ मुण्डितकेश राजकुमारी चन्दना से आहार ग्रहण कर, उच्च क्षत्रिय राजकुल की महारानियो के मुकावले समाज मे निकृष्ट समझी जाने वाली नारी शक्ति की आध्यात्मिक गरिमा और महिमा प्रतिष्ठापित की। जातिवाद और वर्ण-वाद के खिलाफ छेडी गयी यह सामाजिक क्रान्ति भारतीय जनतत्र की सामाजिक समानता का मुख्य आधार बनी है । यह तथ्य पश्चिम के सभ्य कहलाने वाले तथाकथित जनतात्रिक देशो की रंगभेद नीति के विरुद्ध एक चुनौती है। महावीर दूरद्रष्टा विचारक और अनन्तज्ञानी साथक थे । उन्होने अनुभव किया कि आर्थिक समानता के बिना सामाजिक समानता अधिक समय तक कायम नही रह सकती और राजनैतिक स्वाधीनता भी आर्थिक स्वाधीनता के अभाव मे कल्याणकारी नही बनती। इसलिए महावीर का सारा बल अपरिग्रह भावना पर रहा । एक ओर उन्होने एक ऐसी साधु सस्था खडी की जिसके पास रहने को अपना कोई आगार नही। कल के खाने की आज कोई निश्चित व्यवस्था नही, सुरक्षा के लिए जिसके पास कोई साधन सग्रह नही, जो अनगार है, भिक्षुक है, पादविहारी है, निर्ग्रन्थ है, श्रमण है, अपनी श्रम साधना पर जीता है और दूसरो के कल्याण के लिए समर्पित है उसका सारा जीवन । जिसे समाज से कुछ लेना नही, देना ही देना है । दूसरी ओर उन्होने उपासक सस्थाश्रावक सस्था खडो को जिमके परिग्रह की मर्यादा है, जो अणुव्रती है । ___ श्रावक के बारह व्रतो पर जब हम चिन्तन करते हैं तो लगता है कि अहिंसा के समानान्तर ही परिग्रह की मर्यादा और नियमन का विचार चला है । गृहस्थ के लिए महावीर यह नहीं कहते कि तुम सग्रह न करो। उनका वल इस बात पर है कि आवश्यकता से अधिक संग्रह मत करो। और जो सग्रह करो उस पर स्वामित्व की भावना मत रखो । पाश्चात्य जनतात्रिक देशो मे स्वामित्व को नकारा नही गया है । वहा सम्पत्ति को एक स्वामी से छीन कर दूसरे को स्वामी वना देने पर बल है । इस व्यवस्था मे ममता टूटती नही, स्वामित्व बना रहता है और जब तक स्वामित्व का भाव है- सघर्प है, वर्ग भेद है । वर्ग विहीन समाज रचना के लिए स्वामित्व का विसर्जन जरूरी है । महावीर ने इसलिए परिग्रह को सम्पत्ति नही कहा, उसे मुर्छा या ममत्व भाव कहा है। साधु तो नितात अपरिग्रही होता ही है, गृहस्थ भी धीरे-धीरे उस ओर बढे, यह अपेक्षा
SR No.010213
Book TitleJain Darshan Adhunik Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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