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________________ जाती है तो वह हिंसा है। स्वतंत्रता का यह अहिंसक आधार अत्यन्त व्यापक और लोक मागलिक है । जब हम किसी दूसरे के चलने-फिस्ते पर रोक लगाते हैं तो यह कार्य जीव के शरीरबल प्रारण की हिंसा है । जब हम किसी प्राणी के बोलने पर प्रतिबंध लगाते है तो यह वचनबल प्राण की और जब हम हम किसी के स्वतंत्र चिन्तन पर प्रतिबंध लगाते हैं तो यह उसके मनोबल प्राण की हिंसा है। इसी प्रकार किसी के देखने, सुनने आदि पर प्रतिबंध लगाना विभिन्न प्राणो की हिंसा है । कहना नही होगा कि भारतीय सविधान मे मूल अधिकारो के अन्तर्गत लिखने, बोलने, गमनागमन करने आदि के जो स्वतंत्रता के अधिकार दिये गए हैं, उनके सूत्र भगवान् महावीर के इस स्वातंत्र्य बोध से जोडे जा सकते हैं । भगवान् महावीर ने श्रावक धर्म के सन्दर्भ से जिस व्रत-साधना की व्यवस्था दी है, सामाजिक जीवन पद्धति से उसका गहरा जुडाव है । अहिसा के साथ-साथ सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, इच्छा परिमारण आदि व्रत व्यक्ति को सयमित और अनुशासित बनाने के साथ-साथ दूसरो के अधिकारो की रक्षा और उनके प्रति आदर भाव को बढावा देते है । अचौर्य और इच्छा परिमाण व्रतो की आज के युग मे बडी सार्थकता है । अचौर्य व्रत व्यवहार-शुद्धि पर विशेष बल देता है । इस व्रत मे व्यापार करते समय अच्छी वस्तु दिखा कर घटिया दे देना, किसी प्रकार की मिलावट करना, झूठा नाप तोल तथा राज्य व्यवस्था के विरुद्ध आचरण करना निषिद्ध है | यहा किसी प्रकार की चोरी करना तो वर्जित है ही, किन्तु चोर को किसी प्रकार की सहायता देना या चुराई गई वस्तु को खरीदना भी वर्जित है । आज की बढती हुई तस्कर वृत्ति, चोरबाजारी, रिश्वतखोरी, टैक्स चोरी आदि सब महावीर की दृष्टि से व्यक्ति को पाप की ओर ले जाते हैं, उसे मूच्छित और पराधीन बनाते हैं । इन सब की रोक से ही व्यक्ति स्वतंत्रता का सही अनुभव कर सकता है। महावीर की दृष्टि मे राजनैतिक स्वतंत्रता ही मुख्य नही है । उन्होने सामाजिक व आर्थिक स्वतंत्रता पर भी बल दिया । उन्होने किसी भी स्तर पर सामाजिक विषमता को महत्त्व नही दिया । उनकी दृष्टि मे कोई जन्म से ऊँचा - नीचा नही होता, व्यक्ति को उसके कर्म ही ऊँचानीचा बनाते हैं । उन्होने परमात्म-दशा तक पहुचने के लिए सब लोगों १४
SR No.010213
Book TitleJain Darshan Adhunik Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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