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________________ वर्तमान सदर्भ और महावीर भगवान् महावीर को हुए आज २५०० वर्ष से अधिक हो गये हैं पर अभी भी हम उन जीवन-मूल्यो को आत्मसात् नहीं कर पाये हैं जिनकी प्रतिष्ठापना के लिए उन्होने अपने समय में साधनारत संघर्ष किया। सच तो यह है कि महावीर के तत्त्व चिन्तन का महत्त्व उनके अपने समय की अपेक्षा आज वर्तमान सन्दर्भ मे कहीं अधिक सार्थक और प्रासगिक लगने लगा है । वैज्ञानिक चिन्तन ने यद्यपि धर्म के नाम पर होने वाले बाह्य क्रियाकाण्डो, अत्याचारो और उन्मादकारी प्रवृत्तियो के विरुद्ध जन-मानस को सघर्षशील बना दिया है, उसकी इन्द्रियो के विषयसेवन के क्षेत्र का विस्तार कर दिया है, औद्योगिकरण के माध्यम से उत्पादन की प्रक्रिया को तेज कर दिया है, राष्ट्रो की दूरी परस्पर कम करदी है, तथापि आज का मानव सुखी और शान्त नही है। उसकी मन की दूरिया बढ़ गई है। जातिवाद, रगभेद, भुखमरी, गुटपरस्ती जैसे सूक्ष्म सहारी कीटाणुओ से वह ग्रस्त है। वह अपने परिचितो के बीच रहकर भी अपरिचित है, अजनवी है, पराया है। मानसिक कु ठाओ, वैयक्तिक पीडायो और युग की कडवाहट से वह त्रस्त है, सतप्त है। इसका मूल कारण है-आत्मगत मूल्यो के प्रति निष्ठा का अभाव । इस प्रभाव को वैज्ञानिक प्रगति और आध्यात्मिक स्फुरणा के सामजस्य से ही दूर किया जा सकता है। __आध्यात्मिक स्फुरण की पहली शर्त है-व्यक्ति के स्वतन्त्रचेता अस्तित्व की मान्यता, जिस पर 'भगवान् महावीर ने सर्वाधिक बल दिया और आज की विचारधारा भी व्यक्ति मे वाछित मल्यो की प्रतिष्ठा के लिए अनुकूल परिस्थिति निर्माण पर विशेप बल देती है। आज सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर मानव-कल्याण के लिए नानाविध सस्थाएं और एजेन्सिया कार्यरत है। शहरी सम्पत्ति की सीमाबन्दी, भूमि का सीलिंग और आयकर-पद्धति आदि कुछ ऐसे कदम हैं जो आर्थिक विषमता को कम करने मे सहायक सिद्ध हो सकते हैं । धर्मनिरपेक्षता का सिद्धान्त भी, मूलत इस बात पर बल देता है कि अपनी-अपनी भावना के अनुकूल प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म के अनुपालन की स्वतन्त्रता है । ये परिस्थितिया मानव-इतिहास मे इस रूप मे इतनी सार्वजनीन बनकर पहले कभी नही आई । प्रकारान्तर से भगवान् महावीर का अपरिग्रह व अनेकान्त-सिद्धान्त इस चिन्तन के मूल मे प्रेरक घटक रहा है।
SR No.010213
Book TitleJain Darshan Adhunik Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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