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________________ इन सबकी भूमिकाएं निहित हैं। मार्क्स की आर्थिक क्रान्ति का मूल आधार भौतिक है, उसमे चेतना को नकारा गया है जबकि महावीर की यह आर्थिक क्रान्ति चेतनामूलक है। इसका केन्द्र-विन्दु कोई जड पदार्थ नहीं वरन् व्यक्ति स्वय है। बौद्धिक क्रान्ति महावीर ने यह अच्छी तरह जान लिया था कि जीवन तत्त्व अपने मे पूर्ण होते हुए भी वह कई अशो की अखण्ड समष्टि है। इसीलिये अशो को समझने के लिए अश का समझना भी जरूरी है। यदि हम अश को नकारते रहे, उसकी उपेक्षा करते रहे तो हम अशी को उसके सर्वाग सम्पूर्ण रूप मे नही समझ सकेगे। सामान्यत. समाज मे जो झगडा या वाद-विवाद होता है, वह दुराग्रह, वादिता और एक पक्ष पर अड़े रहने के ही कारण होता है। यदि उसके समस्त पहलओ को अच्छी तरह देख लिया जाय तो कही न कही सत्यांश निकल आयेगा। एक ही वस्तु या विचार को एक तरफ मे न देखकर उसे चारो ओर से देख लिया जाय, फिर किसी को एतराज न रहेगा । इम वौद्धिक दृष्टिकोण को हो महावीर ने स्याद्वाद या अनेकात दर्शन कहा । इस भूमिका पर ही आगे चल कर सगुण-निर्गुण के वाद-विवाद को, ज्ञान और भक्ति के झगड़े को सुलझाया गया। आचार मे अहिंसा की और विचार मे अनेकात की प्रतिप्ठा कर महावीर ने अपनी क्रान्तिमूलक दृष्टि को व्यापकता दी। अहिंसक दृष्टि इन विभिन्न क्रान्तियो के मूल मे महावीर का वीर व्यक्तित्व ही सर्वत्र झाकता है । वे वीर ही नहीं, महावीर थे। इनकी महावीरता का स्वरूप आत्मगत अधिक था । उसमे दुष्टो से प्रतिकार या प्रतिशोध लेने की भावना नहीं वरन् दुष्ट के हृदय को परिवर्तित कर उसमे मानवीय सद्गुणो-दया, प्रेम, सहानुभूति, करुणा आदि को प्रस्थापित करने की स्पृहा अधिक है । दृष्टिविष सर्प चण्डकौशिक के विप को अमृत वना देने मे यही मूल वृत्ति रही है। महावीर ने ऐसा नहीं किया कि चण्डकौशिक को ही नष्ट कर दिया हो । उनकी वीरता मे शत्रु का दमन नही, शत्र के दुर्भावो का दमन है । वे दुराई का वदला बुराई से नहीं बल्कि भलाई से देकर बुरे व्यक्ति को ही भला मनुष्य बना देना चाहते हैं। यही अहिंसक दृष्टि महावीर की आन्ति को पृष्ठभूमि रही है।
SR No.010213
Book TitleJain Darshan Adhunik Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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