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________________ [८४ जैन-दर्शन देवको प्रमाण मानकर "भगवान जिनेन्द्र देव वीतराग सर्वज्ञ हैं इसलिये वे किसी प्रकार भी मिथ्या भापण नहीं कर सकते. इस प्रकार भगवान जिनेन्द्र देव पर अटल श्रद्धा रखकर और उनके कहे हुए आगमको सर्वथा प्रमाण मानकर आगम के अनुसार ही सूक्ष्म पदार्थों का श्रद्धान करना तथा स्थूल पदार्थों का श्रद्धान भी आगम के अनुसार ही करना और उसी प्रकार उन पदार्थों का चितवन करना आज्ञा विचय नामका धHध्यान है । अथवा सम्यग्दर्शनादिक के कारण जिसके परिणाम विशुद्ध हैं जो अपने तथा अन्य मतके शास्त्रोंका जानकर है ऐसा पुरुप श्रतज्ञान की सामर्थ्य से सिद्धांत शास्त्र के अनुसार हेतु नय दृष्टांत पूर्वक जो सर्वज्ञ प्रणीत तत्त्वोंका निरूपण करता है तथा दूसरों पर प्रभाव डालकर भगवान सर्वत्र देवकी श्राज्ञाका प्रचार करता है और ऐसे प्रचार के लिये वारवार चितवन करता है वह भी आज्ञा विचय नामका धर्म्यध्यान है। विचय शब्दका अर्थ विचारणा, वार वार चितवन करना है। भगवान की आज्ञा का प्रचार किस प्रकार हो-इस प्रकार बार बार चितवन करना आज्ञा-विचय है। अपाय-विषय-जिस प्रकार जन्म से अंधे पुरुष बलवान होकर भी मार्ग भूल जाते हैं, यदि उनको कोई जानकार मार्ग को न बताये तो वे नीची ऊंची भूमि में गिर पड़ते हैं, कांटे कंकड लग जाते हैं और मार्ग भूलकर विपम वनमें पड़ जाते हैं, फिर चलते हुए भी मार्ग पर नहीं आते। इसी प्रकार सर्वज्ञ प्रणीत मोक्ष मार्ग से विमुख हुए तथा मोक्षकी इच्छा करने वाले पुरुष भी मोक्ष मार्ग को न
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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