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________________ [२ जैन-दर्शन तीसरा आत्तध्यान-किसो वेदना या रोग के उत्पन्न होने पर उसके दूर करने के लिये शरीर पटकना, शोक करना, रोना, आंसू. डालना आदि सब वेदना से उत्पन्न होने वाला तीसरा आर्तध्यान कहता आदि सब वेदनार पटकना, शोक के उत्पन्न होने पर चौथा निदान-जो पदार्थ प्राप्त नहीं हैं उनको प्राप्त करने की आकांक्षा करना तथा बार वार अकांक्षा करते रहना निदान है। इस प्रकार आतध्यान के चार भेद हैं। यह चारों प्रकार का आर्तध्यान तिर्यंच गतिका कारण है। तथा यह ध्यान पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें गुणस्थान तक होता है और निदान को छोड कर छठे गुणस्थान में भी होता है। रौद्रध्यान जो ध्यान रुद्र परिणामों से होता है उसको रौद्रध्यान कहते हैं। तथा रुद्र परिणाम हिंसा, झूठ, चोरी आदि पापों के कारण होते हैं । इसके चार भेद हैं । हिंसानंद, मृपानंद, चौर्यानंद और विषय-संरक्षणानंद । हिंसानंद-हिंसा में आनंद मानना वार बार उसका चितवन करना हिंसानंद रौद्रध्यान है।। मृपानंद-झूठ बोलने में आनंद मानना, बार बार उसका चतवन करना मृपानंद रौद्रध्यान है। चौर्यानंद-चोरी करने में आनंद मानना, बार बार उसका चितवन करना चौर्यानंद रौद्रध्यान है।
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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