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________________ जन-दशन-- ख्यात कहते हैं। इस चारित्र में अनंत गुणी: विशुद्धि होती है और अनंत गुणी कर्मों की निर्जरा होती है ।.. .. तप कर्मों की निर्जरा का मुख्य कारण तप है। अथवा यों कहना चाहिये कि तप ही साक्षात् मोक्षका कारण है। उस तपके दो भेद हैं-एक वाह्य तप और दूसरा अंतरंग तप । जो वाहर से दिखाई दे या.ज़ाना जाय अथवा जिसको गृहस्थ भी कर.सकें उसको वाह्य तप कहते हैं उस..वाह्य तप के छह भेद हैं। अनशन, अवमोदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रस-परित्याग, विविक्तशय्यासन और काय-केशः । अनशनः अनशन शब्दका अर्थ ; उपवास है। जो उपवास संत्रसाधन, आदि:किसी, अपेक्षा से रहित, संयम की वृद्धि के लिये राग द्वषःको दूर करने के लिये कर्मों को नाश करने के लिये, ध्यानाकी वृद्धिा के लिये नौरायाराम की वृद्धि के लिये किया जाता है। उसको अनशन तप कहते हैं। वह अनशन दो प्रकार का है। एक तो नियतः काल तक और दूसरा शरीर त्याग पर्यंत । एकाशन, एक दिन-दो दिन, चार दिन आदि काल-की-मर्यादा लेकरः जो उपवास : किया जाता है वह नियत काल अनशन है। तथा समाधिमरण के समय जो मरण. पर्यंत आहार. का त्याग किया जाता है वह अनियत काल अनशन कहलाता है। इससे इन्द्रियों का दमत होता . है, राग द्वेष दर होता है और कर्मों की परम निर्जरा होती है।
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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