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________________ - - - - जैन दर्शन .. सत्कार पुरस्कार वे मुनिराज घोर तपस्वी होते हैं, परम ब्रह्मचारी होते हैं महाविद्वान होते हैं और अनेक परवादियों को जीतने वाले होते हैं तथापि - मुनिराज अपने मान अपमान को समान समझते हैं। यदि कोई उनका अपमान भी करता है तो भी वे उसको हितका ही उपदेश देते हैं और उस अपमान को • अपने कर्म का उदय समझते हैं। इस प्रकार के मुनिरांजः सत्कार पुरस्कार परीषह का सहन करते हैं । __ प्रज्ञा-जो मुनि अंग पूर्व के धारी होते हैं समस्त ग्रंथ और अर्थों के जानकार होते हैं, भूत भविष्यत और वर्तमान के जानकार होते हैं तथा सर्वोत्कृष्ट विद्वान होते हैं तथापि वे मुनिराज अपने मनमें अपने ज्ञानका कभी अभिमान नहीं करते । इस प्रकार वे मुनिराज अपने अभिमान का निरास कर प्रज्ञा परीषह को. -:जीतते हैं। ..: अज्ञान-जो मुनि बहुत दिन के महा तपस्वी हैं, परम ब्रह्म चारी हैं "फिर भी यदि उनके ज्ञान की वृद्धि नहीं होती और दुष्ट 'लोग उनको अज्ञानी कहते हैं, "ये कुछ नहीं जानते, पशुके समान हैं, इस प्रकार दुर्वचन कहते हैं तथापि वे मुनिराज अपने मन में किसी प्रकारका खेद नहीं करते। मेरे ज्ञान का अतिशय प्राप्त क्यों नहीं होता। इस प्रकार का खेद अपने मन में कभी नहीं करते। इस प्रकार वे अज्ञान परीषह का सहन करते हैं। ... 'अदर्शन--जो मुनि'परम तपस्वी होते हैं, परम ब्रह्मचारी होते हैं, समस्त तत्त्वों के जानकर अत्यन्त बुद्धिमान और ज्ञानी होते
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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