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________________ MMMmaaan KARAMAN- Pewww . जैन दर्शन · · भवपरिवर्तन कोई जीव पहले नरक में दशहजार वर्षको आयु पाकर जन्म ले। फिर ससार में परिभ्रमणकर दुवारा उतनी ही आयु पाकर वहीं जन्म ले । इस प्रकार दशहजार वर्ष के जितने समय होते हैं उतनी ही वार वहीं उतनी ही आयु पाकर जन्म ले । फिर एक समय अधिक दशहजार वर्षको आयु पाकर जन्म ले इसी म से एक एक समय अधिक की आयु पाकर जन्म लेता हुआ नरक के तेतीस सागर. पूर्ण करे । फिर तिथंच गति, मनुष्य गति और देव गति की समस्त आयु इसी प्रकार एक एक समय बहाता हुश्रा पूर्ण करे । इस प्रकार चारों गतियों का परिभ्रमण पूर्ण करने पर एक भव परिवर्तन होता है। ___ भावपरिवर्त्तन-भाव शब्दका अर्थ परिणाम है जिनसे कर्म बंध होता है। कर्मों की स्थिति के लिये कपायाध्यवसाय स्थान कारण हैं । कपायाध्यवसाय स्थान के लिये अनुभागाध्यवसाय स्थान कारण हैं और अनुभागाध्यवसाय स्थान के लिये योग स्थान कारण हैं। जघन्यः स्थिति के लिये जघन्य कषायाध्यवसाय - स्थान हो कारण हैं । जघन्य कषायाध्यवसाय स्थान के लिये जघन्य ही अनुभागाध्यवसाय स्थान कारण हैं और जघन्य अनुभागाध्यवसाय स्थान के लिये जघन्य ही योगस्थान कारण हैं । किसी जीव के जघन्य योग स्थान हुए, फिर अन्य अनेक योग स्थान होकर फिर जघन्य योगस्थान हुए । इस प्रकार असंख्यात योग स्थान हों तव एक अनुभागाध्यवसाय स्थान होता है। ऊपरके अनुसार ही फिर असंख्यात जघन्य योगस्थान हों तब दूसरा यौग अनुभागाध्यवसाय
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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