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________________ जेन-दर्शन -- ४१] विना सम्यक्चारित्र के कभी किसी को मोक्ष को प्राप्ति नहीं हो सकती। अतएव मोक्ष प्राप्त करने के लिये सम्यक् चारित्र को धारण करना प्रत्येक भव्य जीवका कर्तव्य है । भगवान् जिनेन्द्र ने सम्यक् चारित्र को ही धर्म बतलाया है। इसका भी कारण यह है कि सम्यक् चारित्र के साथ साथ सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान अवश्य होते हैं। बिना सम्यग्दर्शन के न तो सम्यग्ज्ञान हो सकता है और न सम्यक् चारित्र हो सकता है। इसीलिये सम्यकचारित्र साक्षात् मोक्ष का कारण है। ___ इस सम्यक्चारित्र के मुख्य दो भेद हैं-एक सकल चारित्र और दूसरा विकल या एकदेश चारित्र । मन वचन काय और कृत कारित अनुमोदना से समस्त पापोंका त्याग.कर देना पूर्ण चारित्र या सकल चारित्र है। तथा मन वचन काय और कृत कारित अनुमोदना की संख्या में से किसी भी कम संख्यासे पांचों पापोंका त्याग करना एक देश चारित्र है। आगे अत्यंत संक्षेपसे सकल चारित्र का निरूपण करते हैं। इस सकल चारित्र को उत्तम मुनि साधु ही पालन कर सकते हैं । इसका भी कारण यह है कि जब यह मनुष्य संसारके दुःखों से भयभीत हो जाता है और राग द्वष मोहका त्यागकर देता है तभी यह मनुष्य गृहस्थ अवस्था का त्याग कर मुनि हो जाता है । गृहस्थ अवस्थामें कितने ही यत्नाचार से क्रियाओं का पालन किया जाय तथापि थोडे बहुत पाप अवश्य लग जाते हैं । अतएव समस्त पापों का त्याग मुनि अवस्था में ही होता है। .
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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