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________________ जैन-दर्शन - - - - - - - - सातों व्यसनों का भी त्याग कर देता है । वे सात व्यसन इस प्रकार हैं-(१) जूआ खेलना, (२) मांस भक्षण करना, (३) मद्यपान करना, (४) वेश्या सेवन करना, (५) शिकार खेलना, (६) चोरी करना, और (७) परस्त्री सेवन करना । ये सात व्यसन कहलाते हैं। सातों ही व्यसन महा निंद्य हैं, अनेक प्रकार के महा दुःख देने वाले हैं और संसार सागर में डुवाने वाले हैं। यही समझ कर. सम्यग्दृष्टी पुरुष इन सातों व्यसनों का सर्वथा त्याग कर देता है। सम्यग्दर्शन के प्रकट हो जाने पर सम्यग्दृष्टी पुरुप कभी किसी से भय नहीं करता। न तो वह इस लोक संबंधी किसी प्रकारका भय करता है, न परलोक संबंधी किसी प्रकारका भय करता है, न किसी वेदना,या दुःख का भय करता है न मरणका भय करता है, न असंयम होने का भय करता है, न अपनी अरता का भय करता है और न कभी अकस्मात् आने वाली आपत्तियों का भय करता है। वह समझता है कि ये सब आपत्तियां कर्मों के उदयसे होती हैं। और कर्मों का उदय अनिवार्य है। वह किसी के द्वारा किसी प्रकार भी नहीं रुक सकता। इस प्रकार कर्मोंका स्वरूप चितवन करता हुआ तथा अपने आत्मा के गुणों में अनुराग रखता हुआ सम्यहष्टी पुरुष कभी किसो से किसी प्रकार का भय नहीं करता । . इस अपरके कथन से यह स्पष्ट हो जाता है कि सम्यग्दर्शन के . . प्रकट होने से सम्यग्दृष्टी पुरुष सांसारिक समस्त कार्यों से उदास
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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