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________________ Roma - e - जेन-दशन २७५ ] अवश्य ही हो जाती हैं। किसी भी धर्म-कार्य में मंत्र पूर्वक रक्षा सूत्र (कंकण) बांधः देने से उसकी शुद्धिमानी जाती है। इसलिये समस्त पुण्य कार्यों में सदा मंत्र पूर्वक शुद्धि करते रहना चाहिये । किसी आपत्ति के समय में अपनी शक्ति के अनुसार लघु शुद्धि कर लेनी चाहिये । और उस समय केवल शुभ मंत्रों के द्वारा ही लघु शुद्धि करनी चाहिये। किसी आवश्यक प्रसंग के जाने पर भाव पूर्वक गुरु के द्वारा दिये हुए मंत्र के साथ साथ पुण्याहवाचन का पाठ करने से और पुण्याहवाचन को पड़कर उसके छींटे देने से भी शुद्धि मानी जाती है। इसी प्रकार किसी अत्यन्त आवश्यक कार्य के प्राजाने पर स्नान कर गंधोदक के छीटे देने से तथा वार वार जल के छींटे देने से भी शुद्धि मानी जाती है। जो पुरुष अपने हृदय में भगवान जिनेन्द्र देवकी आज्ञाका वह श्रद्धान करते हैं वे पुरुष किसी संकट के समय में द्रव्य शुद्धि करें वा न करें परन्तु उस समय यदि अपने भावों की शुद्धता पूर्वक गंधोदक के छींटे लेलेते हैं, गंधोदक के छींटे से अपने शरीर को शुद्ध कर लेते हैं तो आगम के अनुसार उनकी पूर्ण शुद्धि मानी जाती है। जो पुरुष ऊपर लिखे अनुसार सूतक पातक नहीं मानते वे लोग अवश्य ही मिथ्याष्टी माने जाते हैं, तथा ऐसे लोग मलिन आचरणों को पालन करने वाले, धर्म भ्रष्ट, पापी और कुबुद्धि कहलाते हैं । जो बुद्धिमान् अपने भावों की विशुद्धता पूर्वक सूतक पातक को मोनता है वही पुरुष सम्यग्दृष्टी मोक्ष मार्ग में चलने वाला और धर्म को धारण करने वाला कहा जाता है। यदि कोई
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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