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________________ [ २७४ जैन-दर्शन यदि किसी स्त्री का पति परिंदेश चलांगयां हो और उसके मरने का कोई निश्चय न हों तो उस स्त्री को सूतक मानने की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि उसके मरनेका निश्चय हो जाय तो फिर उसे 'दश दिनको सूतक मानना चाहिये किसी युद्ध के समय में, किसी चिलवं के समय में, किसी विशेष विपत्ति के समय में, राज्य की ओर से होने वाले किसी संकट के समय में, प्रतिष्ठादिक किसी महाधार्मिक क्रियाओं के प्रारम्भ में अथवा महापुण्य उत्पन्न करने वाली किसी अन्य धार्मिक विधि में, विवाह के समय में, समुद्र वा नदी में डूब मरने के समय में, अग्नि में जल जाने के समय में. किसी घोर आपत्ति के श्राजाने पर, किसी दुष्काल के पढ जाने पर वा प्राणों पर संकट उत्पन्न हो जाने पर वास्वन काल में हो मरने के सन्मुख होने पर, घोर उपसर्ग आजाने पर वा धर्मपर संकट जाने पर, अथवा श्रेष्ठ क्रिया और श्रेष्ठ श्री चरणों का लोप हो जाने पर वा अन्य ऐसे ही कारण उपस्थित होने पर मनुष्यों को कोई किसी प्रकार का सूतक पातंक नहीं लगता। ऐसी अवस्था में श्रेष्ठ धर्म को बढाने वाला सूतकं पातक अपनी शक्ति के अनुसार मान लेना चाहिये। किसी प्रतिष्ठां के समय में, अथवा कुटुम्बी में होने वाले किसी विवाह के समय में यदि सुतकं पातक आ जाय तो गुरु के द्वारा दिया हुआ व्रत मंत्र वा क्रियाओं से होने वाला शुभ प्रायश्चित्त लेकर शुद्धि कर लेनी चाहिये। इसका भी कारण यह है कि विपत्ति के समय में मंत्र से भी सर्वत्र शुद्धि हो जाती है और फिर गुरु के द्वारा दिये हुए मंत्र से तो सुख देने वाली शुद्धि
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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