SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - २६] जैन दर्शन मावाय-यदि चौथे दिन भी रजोधर्म बंद न हो तो उसे रजोधर्म बंद होने पर अपनी शुद्धि करनी चाहिये तथा उक्तक रजोधर्न होता रहे तब नक से अशुद्ध ही समझना चाहिये । यदि पाठ वर्ष से ऊँची अवस्था का बालक रजस्वला का र्श करले तो उसकी शुद्धि स्नान करने से ही होती है। परंतु दूध पीने वाला चालक रजस्वला के सर्श कर लेने पर प्रोजन करने से ही श्रोत पानी का छींटा देने मान से ही शुद्ध हो जाना है । यदि कोई वाला लोलह वर्ष का हो और यह रोगी हो तथा या रजस्वला का स्पर्श करते तो पंच नमस्कार मंत्रका धारण कर प्रोक्षण करने से वा जलका छींटा देने से ही वह शुद्ध हो जाता है। यदि कोई रजस्वला को बीमार हो तो विधि पूर्वक पंच नमस्कार मंत्रका स्चारण कर गीले कपड़े से अच्छी तरह पोंछ लेने से ही इसी शुद्धि हो जाती है । यदि कोई रजस्वला स्त्री अधिक बीमार हो तो गीले कपड़े से पोछ लेने से शुद्ध हो जाती है अथवा बारह बार पंच नमस्कार मंत्रका उचारण कर पानी के छीदे देने से भी शुद्ध हो जाती है। यदि किसी को जन्म का यानरलका अथवा किसी के सर्श करने का सूतक लगा हो और वह बोच में हो रजस्वला हो जाय तो उसे स्नान करके हो भोजन करना चाहिये। यदि भोजन करते समय रमायला हो जाय तो उसे अपने मुखता बन्न बाहर निकल देना चाहिये और रिस्नान कर भोजन करना चाहिये । ति नियमानुसार सूनक पालना चाहिये। यदि किसी
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy