SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन-दर्शन २५४ से शुद्ध कर लेना चाहिये । यदि और भी कोई चीज उसने ली हो तो वह सब भी शुद्ध कर लेनी चाहिये । यदि कोई पुरुष अपनी भूलसे वा अज्ञान से रजःस्वला स्त्री के वस्त्र वा वर्तन स्पर्श करले तो उसकी शुद्धि स्नान करने से ही होती है। यदि कोई पुरुष उस स्त्री के द्वारा दिये हुए भोजन को खाले तो उसे स्नान आचमन कर प्रायश्चित्त लेना चाहिये । जो पुरुष अपने दुष्ट परिणामों से जान बूझकर रजःस्वला स्त्रीका स्पर्श करले तो उसको पंचामृताभिषेक करने का प्रायश्चित्त लेना चाहिये । यदि रजःस्वला स्त्री अपने रजोधर्म का ज्ञान न होने के कारण किसी वस्त्रादिक का स्पशे करले तो.उन सब वस्त्रादिकों को धोकर शुद्ध करना चाहिये और उस पृथ्वीको मिट्टी से लीपना चाहिये । जो कोई पुरुष जानबूझकर विना शुद्ध किये हुए रजःस्वला के वर्तनों में खालेता है तो उसका प्रायश्चित्त एक उपवास' और एक एकाशन करना है। जो पुरुष रजस्वला अवस्थामें भी स्त्री के साथ काम चेष्टा करना चाहता है उसको दो उपवास करने का प्रायश्चित्तं ग्रहण करना चाहिये। जो पुरुष जान बूझकर रजःस्वला स्त्री का सेवन करता है वह मूर्ख गुरु के द्वारा दिये हुए प्रायश्चित्त से ही शुद्ध होता है। इसके सिवाय उसे पंचामृत से भगवान जिनेन्द्र देवका अभिषेक करना चाहिये और स्नान आचमन कर एकसौ आठवार पंच नमस्कार मंत्रका जप करना चाहिये । रजःस्वला स्त्रियों को अपना रजोधर्म बंद हो जाने पर अपने वस्त्र वा वर्तन आदि शुद्ध कर लेने चाहिये।
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy