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________________ - - - - - जैन-दर्शन स्त्रियों के रजो धर्म स्वभाव से ही प्रत्येक महीने में होता है उसको प्राकृतिक वा स्वाभाविक रजो धर्म कहते हैं, तथा इसके सिवाय रोगादिक के कारण जो रजो धर्म महीने से पहिले ही हो जाता है उसको वैकृति वा विकार से उत्पन्न होने वाला रजो धर्म कहते हैं। प्राकृतिक अर्थात् प्रत्येक महीने में होने वाले रजो धर्म में स्त्रियों को उस रजो धर्म के होने के समय से तीन दिन तक सूतक मानना चाहिये । चौथे दिन वह स्त्री केवल पतिके लिये शुद्ध मानी जाती है, तथा दान और पूजा आदि कार्यों में पांचवें दिन शुद्ध मानी जाती है । इस रजोधर्म में वह स्त्री पहले दिन चांडालिनी के समान मानी जाती है, दूसरे दिन ब्रह्मचर्य को घात करने वाली के समान मानी जाती है और तीसरे दिन धोविन के समान मानी जाती है। इस प्रकार तीन दिन तक तो वह . अशुद्ध रहती है, चौथे दिन मस्तक पर से स्नान करने पर वह शुद्ध होती है। यदि किसी रोगादिक के कारण से ऋतु काल के बीत जाने पर अठारह दिन के भीतर हो रजःस्वला हो जाय तो उसकी शुद्धि स्नान करलेने मात्र से ही हो जाती है। यदि रजःस्वला स्त्री स्नान करलेने के बाद किसी रोगसे अथवा किसी राग की तीव्रता से फिर रजःस्वला हो जाय तो उसे उस दिन का सूतक मानना चहिये । यदि कोई स्त्री किसी महारोग के कारण अकाल में ही रजःस्वला हो जाय तो फिर उसका सूतक नहीं माना जाता। अकाल में स्त्री रजःस्वला होने पर वह स्त्री केवल स्नान करने मात्र से शुद्ध हो जाती है। पचास वर्ष से ऊपर की अवस्था
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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