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________________ [ २५४ जैन-दर्शन हे तो ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्यों का सज्जातिपना नष्ट हो जाता है । और सूतक पातक का पालन किये बिना मोक्षमार्ग में प्रवृत्ति होती भी है और नहीं भी होती है । भगवान जिनेन्द्र देव की श्राज्ञा को पालन करने वाले ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्यों को सूतक पातक का पालन किये बिना देव पूजा, गुरु की उपासना आदि कार्य कभी नहीं करने चाहिये । जो श्रावक सूतक पातक में भी भगवान जितेन्द्र देव की पूजा करता है वा गुरु की उपासना करता है उसके केवल पाप का ही आस्रव होता है । जो पुरुष अपने अज्ञान सेवा प्रमाद से सूतक पातक को नहीं मानता वह जैन होकर भी मिध्यादृष्टी माना जाता है । तथा भगवान जिनेन्द्र देव की आज्ञा का लोप करने वाला माना जाता है । भगवान जिनेन्द्र देव ने व्रत पालन करने वाले ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्यों को चार प्रकार का सूतक वतलाया है । पहला आर्तव अर्थात् स्त्रियों के ऋतु धर्म वा मासिक धर्म से होने वाला, दूसरा सौतिक अर्थात् प्रसूति से होने वाला, तीसरा मार्त्यव अर्थात् मृत्यु से होने वाला और चौथा उनके संसर्ग से होने वाला । इनमें से आर्तव सूतक स्त्रियों को होता है । इसको रजो धर्म वा मासिक धर्म कहते हैं । वह रज असंख्यात जीवों से भरा रहता है और इसीलिये वह हिसा का मूल कारण है । इसके सिवाय वह रज परिणामों में विकार उत्पन्न करने वाला है, अपवित्रताका कारण है और ग्लानि आदि का मूल कारण है । इस संसार में वह रजो धर्म दो प्रकार का है। एक प्राकृत और दूसरा वैकृत्त ।
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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