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________________ - जन-दर्शन २३७ ] के नहीं होते । इसलिये ऊपर के अविवाभावों हेतु में कोई व्यभिचार नहीं है। कदाचित् यह कहो कि किसी भी कार्य में पुरुप के प्रयत्न का प्रभाव प्रसिद्ध है अर्थात् समस्त कार्य पुरुष के प्रयत्नों से ही होते हैं सो भी नहीं कह कहतें क्योंकि गोल. पृथ्वी के भ्रमण करने में महेश्वर ने (महादेव वा ईश्वर ने) कारणमात्र का निराकरण किया है, और इस-निराकरण का भी कारण यह बतलाया है कि इस गोल पृथ्वी के भ्रमण करने में किसी पत्थर श्रादि का संघट्टन संभव नहीं हो सकता । अतएव यह सिद्ध हुआ कि इस गोलपृथ्वी का भ्रमण होना असिद्ध है, यह बात नहीं बन सकती। भावार्थ-इस गोल पृथ्वी का भ्रमण अवश्य होता है । दि इस गोल पृथ्वी का भ्रमण न माना जायगा तो उस पृथ्वी पर रहने वाले लोगों को सूर्य चन्द्रमा का उदय अस्त तथा भिन्न भिन्न देशों में सूर्य चन्द्रमा की प्रतीति कभी नहीं हो सकती । परन्तु भिन्न भिन्न देशों में सूर्य चन्द्रमा की प्रतीति और उनका उदय अस्त होता ही है इसलिये कहना चाहिये कि इस गोलाकार पृथ्वी का भ्रमण करना प्रमाणांसद्ध है। इस प्रकार कोई वादी मानता है। अव आगे इतो वादी का उत्तर देते हुए विचार करते हैं । . -पृथ्वी के भ्रमण को निषेध करने वाले अनेक शास्त्र उपस्थित. हैं। उसीके अनुसार अनेक प्रतिनियत देशों में सूर्य चन्द्रमा की
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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