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________________ जैन-देशन चरण कमलों का पूजन करना चाहिये। तदनन्तर उत्तम मध्यम जघन्य पात्रों को आहार देकर तथा अपने आश्रित नौकर चाकर "आदि को खिलापिलाकर स्वयं भोजन करना चाहिये। द्रव्य क्षेत्र काल भाव कम सहायक आदि सब ऐसे होने चाहिये जो दोनों लोंकों के विरुद्ध न हो तथा किसी पुरुषार्थ का घात करने वाला न हो । तथा कोई रोग न हो इसका भी सदा प्रयत्न करते रहना चाहिये। ___ सायंकाल के समय देवपूजन (दीप धूप की आरती कर तथा सामायिक कर समय पर सोजाना चाहिये । रात्रि में जितने दिन बन सके स्त्री सेवनका त्याग कर देना चाहिये तथा निद्रा भंग होने पर बारह भावनाओं का चितवन करना चाहिये । संसार से विरक्त होने का, मोह के त्याग करने का और विपय सेवन के त्याग करने का चितवन करना चाहिये । स्त्री सेवन के त्याग का चितवन विशेष आवश्यक है । इसलिये उसका विशेष चितवन . करना चाहिये । सामायिक और समता भावों का चिन्तवन करना चाहिये और मुनिधर्म पालन करने की भावना रखते हुए रात्रि व्यतीत करनी चाहिये। संस्कार जैन धर्म में संस्कारों को सूचित करने वाली तिरेपन क्रियाए हैं तथा जैन धर्म में दीक्षित होने के लिये अडतालीस क्रियाएं हैं। इनके सिवाय सात परम स्थान माने हैं। परम स्थानों में पहला
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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