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________________ [ २१= जैन-दर्शन सुपमा सपिंग का दूसरा नसुना है यह तोन फोट कोठी सागर का होता है । इसमें मनुष्यों को आयु दो पल्य, शरीर की ऊंचाई चार हजार धनुष होती है। यह नयम भांग भूमि कहलाती है। इसमें दो दिन बाद वने बराबर आहार लेते हैं 1 सुपमा दुःषमा- तीसरा काल सुपमा बना है। यह दा काटाकोटी सागर का होता है। इसमें मनुष्यों की एक पल्य, शरीर की उंचाई दो हजार धनुष होती है। यह जवन्य भोग भूमि है। इसमें मनुष्य एक दिन बाद के बराबर जाहार लेते हैं । यहां से आगे कर्मभूमि का प्रारंभ होता है। पौधा पांचवां छठा ये तीनों काल कर्मभूमि के हैं। चौबे कालका नाम चुना सुपमा है । यह व्यालीस हजार वर्ष कम एक कोटा फोटो सागर का है । इसके प्रारंभ में मनुष्यों की श्रायु एक करोठ पर्व की होती है । शरीर की ऊंचाई पांचसौ धनुष और आहार प्रतिदिन होता है । इस काल में प्रारंभ से ही कल्पवृक्ष नष्ट हो जाते हैं और खेती व्यापार मुनीमगरी सेना । सेवा श्रादि के द्वारा जीविका चलती है । इसीलिये इन कालांफो कर्मभूमि कहते हैं इसी चौधे कालमें चौबीस तीर्थकर, बारह चक्रवर्ती, नौ नारायण, नौ बलभद्र और नौ प्रतिनारायण इस प्रकार तिरेसठ महापुरुष होते हैं । ये सवजीव जन्म जन्मांतर से पुण्य उपार्जन करते हुए तीर्थंकर श्रादि के उत्तम पद प्राप्त करते हैं । इनके
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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