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________________ - - - - - जैन-दर्शन २०६] बदलेगी, यदि दूसरे समय में भी नहीं बदलेगी तो तीसरे समय में भी नहीं बदलेगी और इस प्रकार वर्षों वा हजारों लाखों वर्षों में भी नहीं बदलेगी । परन्तु ऐसा होता नहीं है । जीर्ण शीर्ण अवस्था सब की होती है। किसी की शीघ्र होती है किसी की देर से होती है परन्तु होती सबकी है और वह प्रत्येक समय में होते होते ही होती है। इससे सिद्ध होता है कि उत्पाद व्यय ध्रौव्य ये तीनों प्रत्येक द्रव्य मे प्रत्येक समय में रहते हैं । अथवा यों कहना चाहिये कि प्रत्येक द्रव्य इन तीनों मय है। किसी एक दुकान पर बिकने के लिये सोने का घड़ा रक्खा हुआ है । एक माहक उसे मोल लेना चाहता है, दूसरा एक ग्राहक मुकुट बनवाना चाहता था और तीसरा केवल सोना चाहता था। उस घड़े को तोड देने पर सोनेका घड़ा लेने वाला कुछ दुखी होता है और विचार करता है कि यदि घडा मिल जाता तो अच्छा था। मुकुट बनवाने वाला घडे को टूटा हुआ देखकर प्रसन्न होता है। क्योंकि वह समझता है कि मुकुट बनवाने के लिये घड़ेका फूट जाना अच्छा है। तथा सोना लेने वाला मध्यस्थ रहता है और समझता है कि मुझे तो सोना लेना है सोना पहले भी था अब भी है। अब विचार करने की बात है कि यदि उस घडे में तीनों न होते तो उन तीनों मनुष्यों के तीन प्रकार के परिणाम क्यों होते । घडे के टुकडे होने पर एक प्रसन्न होता है, एक शोक करता है और एक तदवस्थ वा ज्यों का त्यों बना रहता है। उस घडे में उत्पाद व्यय ध्रौव्य ये तीनों होने से ही मनुष्यों के परिणाम तीन..
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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