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________________ - जैन-दर्शन में बनी हुई है। इस प्रकार प्रत्येक द्रव्य में उत्पाद व्यय ध्रौव्य ये तीनों एक साथ बने रहते हैं । अथवा यों कहना चाहिये कि प्रत्येक द्रव्य प्रत्येक समय में उत्पन्न होता रहता है, प्रत्येक समय में नष्ट होता रहता है और प्रत्येक समय में ज्यों का त्यों घना रहता है । देखो एक वनस्पति प्रतिदिन बढ़ती है प्रथया एक बालक प्रतिदिन बढ़ता है । परन्तु वह वनस्पति वा वह बालक प्रतिदिन किसी एक समय पर नहीं बढता । किन्तु प्रत्येक समय में उसका परिवर्तन होता रहता है । प्रत्येक समय में उसकी पहली अवस्था नष्ट होती रहती है । नई अवस्था उत्पन्न होती रहती है और यह वनस्पति वा बालक ज्यों का त्यों बना हुया है। यदि प्रत्येक समय में उनकी अवस्था का यदलना न माना जायगा तो फिर कभी भी उनकी अवस्था नहीं बदल सफैगी। इसलिये प्रत्येक द्रव्य की यवस्था प्रत्येक समय में बदलती रहती है यह मानना ही पड़ेगा। यवस्था प्रत्येकाही बदल सामाना जायगा र प्रत्येक समय श्रय यहां पर प्रश्न यह होता है जो मकान वत्न श्रादि पदार्थ घटते वढते नहीं हैं उनको अवधा का बदलना कसे माना जायगा ? तो इसका उत्तर यह है कि मकान वस्त्र प्रादि पदार्थ भी जीर्ण शीर्ण होते हैं । यद्यपि चे वर्षों में. जीर्ण शीर्ण होते हैं परन्तु होते अवश्य हैं । परन्तु उनका जीर्णपना भी किसी विशेप समय पर नहीं होता। किन्तु प्रत्येक समय में उनका अवस्था बदलते वदलते वर्षों में जीणं शीर्ण हो जाते हैं। यदि पहले समय में उनकी अवस्था नहीं बदलेगी, तो फिर दूसरे समय में भी नहीं
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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