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________________ जैन-दर्शन १६१]. क्षेत्र वा किसी समय में किसी कार्य को नहीं कर सकता । जैसे सिद्ध परमेष्ठी पूर्ण ज्ञानयुक्त होने पर भी हलन चलन क्रिया के न करने से कोई काम नहीं कर सकते । इससे यह बात अवश्य मान लेनी पड़ती है कि प्रत्येक कार्य को उत्पन्न करने वाली हलन चलन क्रिया है । यह हलन चलन क्रिया सशरीर जीव में है । इसलिये ऊपर लिखे अनुसार सशरीर जीव ही कर्मों का कर्ता सिद्ध होता है । इस प्रकार पहले प्रश्न का उत्तर सरलता से श्रा जाता है। __ अब दूसरे प्रश्न का उत्तर सुनिये । पहले प्रश्न के उत्तर में यह बात सिद्ध हो चुकी है कि जिस पदार्थ में हलन चलन क्रिया होगी वही पदार्थ नवीन पदार्थ को उत्पन्न कर सकेगा। जैसे सशरीर जीवमें हलन चलन क्रिया है, इसलिये वह सशरीर जीव अनेक कार्योंका कर्ता होता है। ठीक इसी प्रकार वह हलन . चलन क्रिया पुदल तत्त्व में भी है । जैन शास्त्रों में गमन करने की शक्ति जीव और पुगल दोनों में मानी है ! इसलिये जिस प्रकार सशरीर जीव हलन चलन क्रिया की शक्ति रखने के कारण अनेक कार्यों का कत्तो है उसी प्रकार पुदल भी हलन चलन क्रियाको शक्ति रखने के कारण अनेक कार्यों का कर्ता होता है। सशरीर जीव और पुद्गल के कर्तव्य में अंतर केवल इतना ही रहता है कि सशरीर: जीव में ज्ञान की शक्ति अधिक होने से वह व्यवस्थित रूप से कार्यों को करता है। परन्तु पुद्गल में ज्ञान शक्ति नहीं है, इसलिये, पुरल जिस किसी भी कार्य को विना जीवकी सहायता से करता है:
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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