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________________ जैन-दर्शन शब्द के गाय पृथ्वी आदि अनेक अर्थ होने पर भी गाय अर्थ ही लिया जाता है। एवंभूत-वर्तमान काल की क्रिया के आश्रय से जो कहा जाता है उसको एवंभूत नय कहते हैं । जैसे राजा होने पर भी यदि वह पूजा करता है तो उसको पुजारी कहना एवंभूत नय है इस प्रकार ये सात नय है । अथवा नयों के दो भेद हैं:-निश्चयनय और व्यवहारनय । जो नय अभेद विषय को कहता है वह निश्चयनय है तथा भेद विषय को कहने वाला व्यवहार नय है । निश्चय नय के दो भेद हैं:-शुद्ध निश्चयनय और अशुद्ध निश्चयनय । शुद्धनिश्चय कर्म की उपाधियों से रहित गुण और गुणी में अभेद मानना शुद्ध निश्चय नय है। जैसे केवलज्ञान केवलदर्शन . श्रादि सब जीव में रहते हैं। अशुद्ध निश्वय-कर्मों की उपाधि सहित गुण गुणी में अभेद मानना अशुद्ध निश्चय नय है। जैसे मतिज्ञान श्रुतज्ञान जीव में रहते हैं। · व्यवहार नय-दो प्रकार का है। सद्भूत-व्यवहार और बलर व्यवहार । किसी एक ही पदार्थ में भेद मानना सदर करा. है ! उसके भी -उपचरिवसदभूत-नार
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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