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________________ [१८४ जैन दर्शन आदि भी रसोई बनाने का कार्य है और इसीलिये पानी भरते हुए भी रसोई बनाना कहना नैगमनय है । संग्रह - अनेक पदार्थों को एक शब्द से कहना संग्रहनय है । जैसे गाय भैंस आदि सबको पशु कहना, पशु मनुष्य श्रादि प्राणियों को जीव कहना | व्यवहार - संग्रह नय के द्वारा कहे हुए पदार्थों में से घटाते घटाते अंततक घटाते जाना व्यवहार नय है । जैसे जीवों में भी यह मनुष्य है यह पशु है, यह गाय है, यह सफेद गाय है आदि । ऋजुसूत्र - वर्तमान समय की पर्याय को ऋजुसूत्र कहते हैं । इसका विषय प्रत्येक पदार्थ के प्रत्येक समय की पर्याय है । स्थूल ऋजुसूत्र नयसे मनुष्य यादि पर्याय भी इसका विषय है । शब्दनय - लिंग संख्या कारक आदि के व्यभिचार को दूर करने वाला शब्द नय है । जैसे पुल्लिंग वा नपुंसक लिंग का पर्याय वाची स्त्री लिंग भी होता है, एकवचन का पर्यायवाची बहुवचन होता है पष्ठी विभक्ति के स्थान में द्वितीया विभक्ति हो जाती है । यह ऐसा होना व्यवहार के विरुद्ध है । क्योंकि व्यवहार से एक वचन का पर्याय वाची एक वचन और पुल्लिंग का पर्यायवाची पुल्लिंग ही होना चाहिये, परन्तु शब्द नय से ही यह श्रविरुद्ध माना जाता है । समभिरूढ - किसी शब्द के अनेक अर्थ होने पर किसी एक मुख्य अर्थ को प्रहण करना समभिरूड नय है । जैसे गो
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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