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________________ जैन-दर्शन स्वस्तिक-जिसके उदय से खजूर वृक्षके समान नीचे का भाग बढ़ा हो और ऊपर का भाग छोटा हो । १६२ ] कुब्जक - जिसके उदय से कुवटा शरीर प्राप्त हो । वामन-जिसके उदय से चौना - बहुत छोटा शरीर प्राप्त हो । हुंडक-जिसके उदय से शरीर का भाग कोई छोटा हो कोई घडा हो तथा कोई कम और कोई अधिक हो संहनन-जिसके उदय से हड्डियों का बंधन बलिष्ठ हो । इसके छह भेद हैं । वज्रवृपभनाराच संहनन, वज्रनाराच, नाराच, अर्द्धनाराच, कीलक और संप्राप्तास्पाटक । वज्रवृपभनाराच — जिसके उदय से वज्रमय हड्डियां वज्रमय वेस्टन और वज्र की कोलियां होती हों वज्रनाराच -जिसके उदय से वज्रकी हड्डियां, वज्रको कीलियां हों, वेस्टन वज्रके नहीं हो । नाराच -जिसके उदय से हड्डियों में वेष्टन और कीलियां लगी हों । अर्द्धनाराच -जिसके उदय से हड़ियों की संधियां श्रर्द्धकीलित होती हैं अर्थात् हड्डियों के जोडपर एक ओर श्राधी दूरतक कीलें होती हैं एक ओर नहीं । कीलक - जिसके उदय से हड्डियों की संधियां कीलों से जुडी हों ।
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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