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________________ जैन-दर्शन १६१ ] स्थाननिर्माण -जिसके उदय से अंग उपांग इन्द्रियां आदि अपने अपने स्थान पर बने । प्रमाण निर्माण - जिसके उदय से अंग उपांग इन्द्रियां आदि अपने अपने प्रमाण से बने | बंधन - जिसके उदय से शरीरों के परमाणु आपस में मिल जाते हैं । इसके पांच भेद हैं- श्रदारिक, वैकियिक, आहारक, तैजस, कार्माण । औदारिक बंधन-जिसके उदय से श्रदारिक शरीर के परमाणु आपस में मिल जांय । इसी प्रकार अन्य बंधन समझ लेना चाहिये । संघात --जिसके उदय से श्रदारिक आदि पांचों शरीर के परमाणु बिना छिद्र के एक रूप में मिल जांय । इसके भी श्रदारिक आदि पांच भेद हैं। संस्थान -जिसके उदय से शरीरका आकार बने । इसके छह भेद हैं । 'समचतुरस्रसंस्थान, न्यमोधपरिमंडल, स्वस्तिक, कुब्जक, वामन और हुडक । समचतुरस्त्र संस्थान - जिसके उदय से शरीर का आकार ऊपर नीचे बीच में जहां, जैसा, जितना चाहिये उतने ही प्रमाण से बने । १ न्यग्रोधपरिमंडल - जिसके उदय से वृक्ष के समान नीचेका * भाग छोटा हो और ऊपर का भाग बढा हो ।
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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