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________________ जैन दर्शन १५६ ] • एकेन्द्रियजाति-जिसके उदय से एक स्पर्शन इन्द्रिय को धारण करनेवाला शरीर प्राप्त हो । दोइन्द्रियजाति-जिसके उदय से स्पर्शन रसना इन दो इन्द्रियों को धारण करने वाला शरीर प्राप्त हो । तेइन्द्रिय जाति-जिसके उदय से स्पर्शन रसना घ्राण इन तीन इन्द्रियों को धारण करने वाला शरीर प्राप्त हो । चौइन्द्रिय जाति-जिससे उदय से स्पर्शन रसना ब्राण चक्षु इन चार इन्द्रियों को धारण करने वाला शरीर प्राप्त हो । पंचेन्द्रिय जाति-जिसके उदय से पांचों इन्द्रियों का धारण करने वाला शरीर प्राप्त हो। शरीर-जिसके उदय से शरीर प्राप्त हो । इसके पांच भेद हैं-औदारिक, वैकियिक, आहारक, तैजस, कार्माण । औदारिक-जिसके उदय से मनुष्य और तिर्यंचों का उदार वा स्थूल शरीर प्राप्त हो। वैक्रियिक-जिसके उदय से देव वा नारकियों का पिक्रियायुक्त वैक्रियिक शरीर प्राप्त हो । यह शरीर छोटा बड़ा दृष्टिगोचर, अष्टिगोचर, एक वा अनेक रूप हो सकता है। आहारक-जिसके उदय से ऋद्विधारी मुनियों केआहारक नाम का अत्यंत सूक्ष्म श्वेतवर्ण शरीर प्रगट होता है, जो मस्तक से
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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